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________________ अतः उस राजा का कुकड गोत्र निश्चित किया। राजा के शरीर पर गणधर नाम के कायस्थने मक्खन लगाया था। वह भी राजा के साथ जैन हुआ तब उसका मक्खन चुपड़ा सबब “चौपड़ा" गोत्र ठहराया। श्री वर्धमान सूरिने सं. १०२६ में दिल्ली के राजकुमार सोनगरा चौहाण बोहित्य कुमार को रस्सी का सांप बनाकर दंश करवाया और जैन होने की शर्त पर उसे जीवित किया तब उसका “ सचेती-संचेती" गोत्र ठहराया। संवत ११५५ में डीडोजी नाम का खीची राजपूत गुजरात में डकेती करता था उसको श्री जिनवल्लभ सूरिने जैन बनाया और उसका “ धाडीवाल" गोत्र स्थापन किया । इनके एक वंशज को राज-कोठारी की जगह मिली तब उसके वंशज कोठारी कहाये । इसी धाडीवाल कुल में एक के सिरपर गंज (गुजराती में टांट कहते हैं) थी इसमे टांटिया (गंजा) कहने लगे जिससे उसके वंशज टांटिया कहाये । ऐसी उटपटांग अडक को थोडा समय व्यतीत होने बाद गोत्र का नाम प्राप्त हुआ। इन्हें गोत्र मानना केवल हास्या स्पद है। गोत्र तो वही होते हैं जिससे कि कुल की खास सप्तत्ति हुई हो। आजकल पोरवाडों में तो प्रतिशत दस मनुष्य को भी अपना गोत्र याद नहीं होता। कहीं २ श्रीमाली गोर जा जाकर
SR No.032004
Book TitlePorwar Mahajano Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakur Lakshmansinh Choudhary
PublisherThakur Lakshmansinh Choudhary
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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