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________________ कर्म का विज्ञान दादाश्री : कर्म किससे बँधते हैं, वह आपको बताऊँ। कर्म आप करते नहीं, फिर भी आप मानते हो कि 'मैं करता हूँ', इसलिए आपका बंधन जाता नहीं है। भगवान भी कर्ता नहीं है। भगवान कर्ता होते तो उन्हें बंधन होता। यानी भगवान कर्ता नहीं हैं और आप भी कर्त्ता नहीं हो। परन्तु आप मानते हो 'मैं करता हूँ', उससे कर्म बँधते हैं। कॉलेज में पास हुए, वह दूसरी शक्ति के आधार पर होता है और आप कहते हो कि मैं पास हुआ। वह आरोपित भाव है। उससे कर्म बँधते वेदांत ने भी स्वीकार किया निरीश्वरवाद प्रश्नकर्ता : तो फिर किसी शक्ति से होता होगा, तो कोई चोरी करे तो वह गुनाह नहीं और कोई दान दे तो वह भी, सब समान ही कहलाएगा न! दादाश्री : हाँ। समान ही कहलाएगा, लेकिन वे फिर समान रखते नहीं है। दान देनेवाला ऐसे छाती फुलाकर घूमता है, इसीलिए तो बँधा और चोरी करनेवाला कहता है, 'मुझे कोई पकड़ ही नहीं सकता, अच्छे-अच्छों के यहाँ चोरी कर लूँ।' इसलिए मुआ वह बँधा। 'मैंने किया' ऐसा कहे नहीं, तो कुछ भी छुए नहीं। प्रश्नकर्ता : ऐसी एक मान्यता है कि प्राथमिक कक्षा में हम ऐसा मानते हैं कि ईश्वर कर्ता हैं। आगे जाकर निरीश्वरवाद के सिवाय वेद में भी कुछ नहीं है। उपनिषद में भी निरीश्वरवाद ही है। ईश्वर कर्त्ता नहीं है, कर्म के फल हरएक को भुगतने पड़ते हैं। अब ये कर्मों के फल जन्मोजन्म चलते रहते हैं? दादाश्री : हाँ, ज़रूर, कर्म का ऐसा है न कि यह आम में से पेड़ और पेड़ में से आम, आम में से पेड़ और पेड़ में से आम! प्रश्नकर्ता : यह तो उत्क्रांति का नियम हुआ, यह तो होता ही रहेगा। दादाश्री : नहीं, यही कर्मफल है। यह आम फल के रूप में आया,
SR No.030118
Book TitleKarma Ka Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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