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________________ ४ कर्म का विज्ञान है, वही सच है। दादाश्री : तो फिर वास्तव में तो चंदूभाई हो, नहीं? आपको विश्वास नहीं है? ‘माइ नेम इज़ चंदूभाई' बोलते हो आप तो? प्रश्नकर्ता : मुझे तो विश्वास है ही । दादाश्री : माइ नेम इज़ चंदूभाई, नोट आइ । तो आप वास्तव में चंदूभाई हो या कोई और हो ? प्रश्नकर्ता : यह ठीक है, कुछ अलग ही हैं । यह तो हक़ीक़त है। दादाश्री : नहीं, यह चंदूभाई तो पहचानने का साधन है, कि भाई, ये देहवाले, ये भाई, ये चंदूभाई हैं । आप भी ऐसा समझते हो कि इस देह का नाम चंदूभाई है। परन्तु 'आप कौन हो ?' वह नहीं जानना है? प्रश्नकर्ता : वह जानना चाहिए। जानने का प्रयत्न करना चाहिए। दादाश्री : यानी यह किसके जैसा हुआ कि आप चंदूभाई नहीं हो, फिर भी आप आरोप करते हो, चंदूभाई के नाम से सारा लाभ उठा लेते हो। इस स्त्री का पति हूँ, इसका मामा हूँ, इसका चाचा हूँ, ऐसे लाभ उठाते हो और उससे निरंतर कर्म बँधते ही रहते हैं । आप आरोपित भाव में हो, तब तक कर्म बँधते रहते हैं । जब कि 'मैं कौन हूँ?' वह तय हो जाने के बाद आपको कर्म नहीं बँधते हैं। यानी अभी भी कर्म बँध रहे हैं और रात को नींद में भी कर्म बँधते हैं। क्योंकि 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा मानकर सोते हैं । 'मैं चंदूभाई हूँ', वह आपकी रोंग बिलीफ़ है, उससे कर्म बँधते हैं । भगवान ने सबसे बड़ा कर्म कौन - सा कहा ? रात को 'मैं चंदूभाई हूँ' कहकर सो गए और फिर आत्मा को बोरे में डाल दिया, वह सबसे बड़ा कर्म! कर्त्तापद से कर्मबंधन प्रश्नकर्ता : कर्म किससे बँधते हैं? इसे ज़रा अधिक समझाइए ।
SR No.030118
Book TitleKarma Ka Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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