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________________ गुरु-शिष्य तुझे उस घड़ी मिल आएगा ।' लेकिन मिल जाने का अर्थ ऐसा नहीं होता । भावना होनी ही चाहिए। भावना के बिना तो निमित्त भी नहीं मिलता। १७ यह तो बात का दुरुपयोग हुआ है सारा । निमित्त ऐसा बोलता है कि निमित्त की ज़रूरत नहीं है ! खुद निमित्त होने के बावजूद ऐसा बोलता है । प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा श्रीमद् राजचंद्र भी कहते हैं । दादाश्री : सिर्फ श्रीमद् राजचंद्रजी नहीं, तीर्थंकरों ने भी वही कहा है कि निमित्त के बिना कोई काम होगा नहीं । अर्थात् 'उपादान होगा तो निमित्त आ मिलेंगे।' 'निमित्त की ज़रूरत नहीं है' यह तीर्थंकरों की बात नहीं है या श्रीमद् राजचंद्र की बात नहीं है । ऐसी बात जो बोले, उसकी जोखिमदारी है। उसमें दूसरे किसीकी जोखिमदारी नहीं है। कृपालुदेव ने एक ही बात कही है कि, 'दूसरे किसीकी खोज मत कर। केवल एक सत्पुरुष को खोजकर, उनके चरणकमल में सर्व भाव अर्पण करके बरतता जा। फिर भी यदि मोक्ष नहीं मिले तो मेरे पास से लेना ।' नहीं तो ऐसा ही लिखते कि तू अपने आप घर पर सोता रह, उपादान जागृत करते रहना, तो तुझे निमित्त आ मिलेंगे। वह बात खरी, लेकिन निश्चय में प्रश्नकर्ता : दूसरी एक ऐसी भी मान्यता है कि 'निमित्त की आवश्यकता तो स्वीकार्य है ही। लेकिन निमित्त कुछ कर नहीं सकता न !' दादाश्री : यदि निमित्त कुछ कर नहीं सकता वैसा यदि कभी हो न, तो फिर कुछ ढूँढने को रहा ही नहीं न ! पुस्तक पढ़ने की ज़रूरत क्या रही ? मंदिर जाने की ज़रूरत ही कहाँ रही? कोई अक्कलवाला कहे न, कि 'साहब, तब फिर यहाँ किसलिए बैठे हो? आपका हमें क्या काम है ? पुस्तकें किसलिए छपवाई हैं? यह मंदिर क्यों बनवाया है? क्योंकि निमित्त कुछ कर ही नहीं सकता न!' ऐसा कहनेवाला कोई निकलेगा या नहीं निकलेगा ? अँधा मनुष्य ऐसा कहे कि 'मैं अपनी आँखें खुद बनाऊँगा, और
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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