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________________ १८ गुरु-शिष्य देखूँगा, तभी सही है।' तब हम हँसते हैं या नहीं हँसते? ऐसी बातें करते हैं। स्कूल में एक प्रोफेसर हैं । उन्हें बच्चों की ज़रूरत है ही, लेकिन बच्चों को प्रोफेसर की ज़रूरत नहीं ! क्या एक नया मेनिया (पागलपन) चला है ! जो निमित्त कहलाते हैं, ज्ञानीपुरुष या गुरु, वे सभी निमित्त कहलाते हैं, उन्हें हटा देते हैं ! 'ज्ञानीपुरुष' निमित्त हैं और आपका उपादान है । उपादान चाहे जितना तैयार होगा, लेकिन ज्ञानीपुरुष के निमित्त के बिना कार्य नहीं होगा। क्योंकि यह एक ही कार्य ऐसा है, आध्यात्मिक विद्या कि निमित्त के बिना प्रकट नहीं होता है। जब कि निमित्त के बिना प्रकट नहीं होता, वैसा मेरे कहने का भावार्थ है, लेकिन वह नाइन्टी नाइन परसेन्ट ऐसा ही है । परंतु एक प्रतिशत उसमें भी छूट होती है। निमित्त के बिना भी प्रकट हो जाता है। परंतु वह नियम में नहीं माना जा सकता, उसे नियम में नहीं रखा जा सकता । नियम में तो निमित्त से ही प्रकट होता है। अपवाद अलग चीज़ है । नियम में हमेशा अपवाद होना ही चाहिए। वही नियम कहलाता है ! तब इसमें लोग कहाँ तक ले गए हैं कि 'सभी वस्तुएँ अलग हैं, एक वस्तु दूसरी वस्तु के लिए कुछ भी नहीं कर सकती', उसके साथ इसे जोइन्ट कर दिया है। इसलिए उन्हें ऐसा ही लगता है कि कोई दूसरा किसीके लिए कुछ नहीं कर सकता । प्रश्नकर्ता : वे लोग ऐसा ही कहते हैं कि कोई किसीके लिए कुछ कर नहीं सकता। दादाश्री : अब वह वाक्य इतना अधिक गुनहगारीवाला वाक्य है। प्रश्नकर्ता : शास्त्र में जो ऐसा कहा गया है कि कोई किसीके लिए कुछ कर नहीं सकता, वह क्या है? दादाश्री : वह तो अलग बात है। शास्त्र अलग कहना चाहते हैं और लोग समझे अलग! चुपड़ने की दवाई पी जाते हैं और मर जाते हैं, उसमें कोई क्या करे? उसमें डॉक्टर का क्या दोष?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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