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________________ गुरु-शिष्य प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : जहाँ जाओ वहाँ अध्यापक चाहिए ही। कहाँ पर अध्यापक की ज़रूरत नहीं पड़ी वह मुझे कहो? फिर कॉलेज में प्रोफेसर चाहिए या नहीं चाहिए? प्रश्नकर्ता : चाहिए। दादाश्री : अर्थात् मनुष्य के रूप में जन्म लिया, तब से ही उसे सिर पर गुरु चाहिए। स्कूल में गया तो भी गुरु चाहिए, कॉलेज में गया तो भी गुरु चाहिए। उसमें गुरु फिर तरह-तरह के, मैट्रिक में पढ़ते हों उन्हें मैट्रिक का गुरु चाहिए, फर्स्ट स्टेन्डर्डवाला गुरु वहाँ काम नहीं आएगा। यानी गुरु भी अलग-अलग होते हैं। हर एक के एक ही तरह के गुरु नहीं होते। 'कहाँ पढ़ते हैं' उस पर आधारित है। फिर पुस्तक पढ़ते हों, तब पुस्तक, वह आपकी गुरु नहीं है? पुस्तक वह गुरु हो तभी पढ़ेंगे न? कुछ सिखाए, कुछ लाभ दे, तभी पढ़ेंगे न? प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है। दादाश्री : पुस्तकों से सीखते हो, उन पुस्तकों के आधार पर आपको लाभ हुआ। किसी पुस्तक ने हमें मार्गदर्शन दिया, तो वह गुरु कहलाती है। इसलिए पुस्तक भी आपका गुरु है। अध्यापक के पास से, पुस्तक के पास से, मनुष्यों के पास से आप सीखते हो, उन्हें गुरु ही कहा जाएगा। इसलिए पूरा जगत् गुरु ही है न! प्रश्नकर्ता : आज का मनोविज्ञान कहता है कि व्यक्ति को बाहरी आधार छोड़कर, खुद के आधार पर आना चाहिए। बाहरी आधार, वह फिर चाहे जो हो, लेकिन जिज्ञासु उसका आधार लेकर पंगु बन जाता है। दादाश्री : बाहरी आधार लेकर पंगु बने, ऐसा नहीं होना चाहिए। बाहर का आधार छोड़कर खुद के आधार पर ही रहना है। लेकिन खुद का आधार
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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