SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु-शिष्य नहीं हो जाए. तब तक बाहर का नैमित्तिक आधार लेना है। नैमित्तिक! कोई पुस्तक निमित्त रूप बन जाती है या नहीं बन जाती? सबकुछ निमित्तरूप नहीं हो जाता? इसलिए यह आज का मनोविज्ञान जो कहता है आधार छोड़ने को, वैसे कुछ हद तक उसका आधार छोड़ दें, परंतु कुछ हद तक आधार लेना पड़ता है, पुस्तकों का लेना पड़ता है, दूसरा आधार लेना पड़ता है, तीसरा आधार लेना पड़ता है। एक साहब कहते हैं कि 'गुरु नहीं चाहिए।' मैंने कहा, 'किसके गुरु नहीं थे? वह मुझे बताइए। माता ने जो संस्कार दिए, वह गुरु है न?' 'ऐसा करना बेटे, हं देख, इधर देख।' वह गुरु नहीं तो और कौन है? प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : इसलिए मदर (माता) प्रथम गुरु होती है कि, 'बेटा, यह चड़ी पहन ले, ऐसा है, वैसा है।' यानी वह भी उसे सीखना पड़ता है। माँ सिखाती है। चलना सिखाती है, दूसरा सिखाती है। कौन-से जन्म में नहीं चला? अनंत जन्मों में चला है, और फिर वही का वही सीखना। घर में वाइफ नहीं हो और अकेले हो और कढ़ी बनानी हो, तब भी किसीसे पूछना पड़ता है कि अंदर क्या-क्या डालूँ? जिसे-जिसे पूछा वे सभी गुरु कहलाते हैं। अर्थात् गुरु की तो जहाँ-तहाँ पग-पग पर ज़रूरत होती ही है। गुरु तो हर एक काम में चाहिए ही। अभी यह कोर्ट का काम पड़े तो इस वकील को ही गुरु बनाएँ, तभी आपका काम चलेगा न। इसलिए जिसतिस में, जहाँ जाए वहाँ गुरु की ज़रूरत है। हर बात में गुरु की ज़रूरत है! प्रश्नकर्ता : इसलिए ठेठ तक जाना हो तो भी गुरु चाहिए। दादाश्री : जहाँ जाना हो वहाँ गुरु चाहिए। हम यहाँ से गाड़ी लेकर जा रहे हों और हाईवे के रास्ते से जाना हो, तब किसीसे पूछे तब वह ले जाएगा, नहीं तो उल्टे रास्ते चले जाएंगे। इसलिए संसार में भी गुरु की आवश्यकता है और निश्चय में भी गुरु की आवश्यकता है। अर्थात् 'गुरु क्या है? किसे कहते हैं?' वह समझने की ज़रूरत है।
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy