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________________ १३६ गुरु-शिष्य 'मुझे आचार्य कब बनाएँगे?' और आचार्य हो तो 'मुझे फलाँ कब बनाएँगे?' वही भावना सबको होती है। जब कि इस ओर, लोगों को कालाबाज़ार करने की भावना है ! कलेक्टर हो तो 'मुझे कमिश्नर कब बनाएँगे?' वही भावना होती है! जगत् कल्याण की तो किसीको पड़ी नहीं है। यानी कि रिलेटिव में जगत् गुरुता में जाता है। गुरुत्तम तो हो नहीं सकते। प्रश्नकर्ता : रिलेटिव में गुरुता अर्थात् क्या? दादाश्री : गुरुता अर्थात् बढ़ना ही चाहते हैं, ऊँचे चढ़ना चाहते हैं। वे ऐसा समझते हैं कि गुरुत्तम हो जाऊँगा तो ऊपर उठ जाऊँगा, उन्हें रिलेटिव में ही गुरुता चाहिए। उसका तो कब ठिकाना पड़ेगा? क्योंकि रिलेटिव विनाशी है। इसलिए गुरुता इकट्ठी की हुई होती है, इसलिए वह बड़ा बनने को फिरता है, परंतु कब नीचे गिर जाएगा, वह कैसे कह सकते हैं? रिलेटिव में लघुता चाहिए। रिलेटिव में ये सभी गुरु बनने को फिरते हैं, उससे कुछ दिन नहीं बदलते। गुरुता ही पछाड़ती है अंत में बाक़ी, जो लघुत्तम नहीं हुआ है, वह गुरुत्तम होने के लिए पात्र नहीं है। जब कि आज एक भी गुरु ऐसे नहीं है कि जिन्होंने लघुत्तम बनने का प्रयत्न किया हो! सभी गुरुता की ओर गए हैं। 'किस तरह से मैं ऊँचे चढूँ!' उसमें किसीका दोष नहीं है। यह काल बाधक है। बुद्धि टेढ़ी चलती है। इन सभी गुरुओं का काम क्या होता है? किस तरह बड़ा हो जाऊँ? गुरुपन बढ़ाना, वह उनका व्यापार होता है। लघु की तरफ नहीं जाते। व्यवहार में गुरुता बढ़ती गई, नाम हुआ कि, 'भाई, इनके एक सौ आठ शिष्य हैं।' यानी निश्चय में उतना लघु हो गया। लघुत्तम होता जाता है। व्यवहार में गुरु होने लगे, वह गिरने का संकेत है। घर पर एक पत्नी थी और दो बच्चे थे, वे तीन घंट छोड़कर यहाँ पर साधु बने! इन तीन घंटों से ऊब गए और वहाँ फिर एक सौ आठ घंट लटकाए। परंतु इन तीन को छोड़कर एक सौ आठ घंट किसलिए लटकाए? इससे वे
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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