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________________ ३२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : जुगुप्सा यानी क्या ? दादाश्री : जुगुप्सा यानी चिढ़ । जिन पर चिढ़ होती है, वे सारी चीजें उसीमें हैं न! अरे, रेशमी चादर बांध ली तो क्या सब अच्छा हो गया ? कृपालुदेव ने तो बहुत कुछ लिखा है, लेकिन लोग क्या समझें बेचारे ? "फिर, वह सुख क्षणिक, खेद और खुजली के दर्द जैसा ही है। उस समय का दृश्य हृदय में अंकित होकर हँसाता है कि यह कैसा भुलावा है? संक्षिप्त में यह कहना है कि उसमें कुछ भी सुख नहीं है और सुख हो तो उसका अपरिच्छेद रूप से वर्णन करके देखो।" I ' यानी कि विषय का बहुत विवरण कर-करके जांच करके देखो' कृपालुदेव ऐसा कहना चाहते हैं । उसकी सुगंधी देखनी हो तो, उस जगह को सूँघकर तो देख, तुझे कैसा लगता है ? अरे खुली आँखों से दिन के उजाले में देखो, तो वह जगह सुंदर दिखेगी ? हर तरह से उस पर चिढ़ होगी ! 44 'अत: मात्र मोहदशा के कारण, ऐसी मान्यता बन गई है, ऐसा ही पता चलेगा। यहाँ मैं स्त्री के अवयवादि हिस्सों का विवेक करने नहीं बैठा हूँ, लेकिन वहाँ फिर से कभी आत्मा नहीं खिंचे, उस विवेक के हेतु से उसका सहज सूचन किया है । स्त्री में दोष नहीं है, लेकिन (व्यवहार) आत्मा में दोष है और वह दोष चले जाने पर आत्मा जो देखता है वह अद्भुत आनंदमय ही है, अतः उस दोष से रहित होना वही परम जिज्ञासा है।" स्त्री का दोष नहीं है, अपनी भूल का दोष है, अपनी समझ का दोष है। स्त्री का क्या दोष ? यदि स्त्री में दोष होता तो फिर ये भैंसें भी स्त्री ही हैं न? लोग वहाँ क्यों आकृष्ट नहीं होते ? अपनी उल्टी समझ के कारण खिंच जाते हैं। वह उल्टी समझ निकाल दें तो सब निकल जाएगा और कभी न कभी यह उल्टी समझ निकाले बगैर चारा ही नहीं है न ? यह गंद है, इतनी अधिक गंद है कि मेरी तो उसके प्रति चिढ़ ही नहीं जाती !
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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