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________________ दृष्टि दोष के जोखिम ३३ प्रश्नकर्ता : लेकिन उसके बजाय स्त्रियों को शुद्धस्वरूप में, शक्ति के रूप में, आत्मा के रूप में देखें तो? दादाश्री : शुद्ध रूप में देखें तो बहुत सुंदर कहलाएगा! हम स्त्रियों को शुद्ध स्वरूप में ही देखते हैं, इसलिए हमें बहुत आनंद होता है। शुद्ध स्वरूप में देखने जाएँ तो स्त्री, वह तो बॉक्स है, पैकिंग है। इसमें उस बेचारी का क्या दोष? अपनी ही झंझट है, अपनी दृष्टि उल्टी है। दृष्टि बदल लें तो हमें कुछ छूएगा ही नहीं। अपनी दृष्टि उल्टी है, वही भूल है। उसमें किसी का क्या दोष? "शुद्ध उपयोग की यदि प्राप्ति हो गई, तो फिर वह समय-समय पर पूर्वोपार्जित मोहनीय को भस्मीभूत कर सकेगा, यह अनुभवगम्य प्रवचन है!" हाँ, शुद्ध उपयोग की प्राप्ति हो जाए, तो फिर वह मोह को खत्म कर दे! "लेकिन यदि अभी तक पूर्वोपार्जित मुझे बर्तता है, तब तक मेरी किस दशा से शांति होगी? यह सोचने पर मुझे निम्न प्रकार से समाधान हुआ।" "स्त्री को सदाचारी ज्ञान देना चाहिए। उसे एक सत्संगी की तरह मानना। उसके साथ धर्मबहन का संबंध रखना। अंत:करण से किसी भी प्रकार से माँ, बहन और उसमें अंतर नहीं रखना। उसके शारीरिक भाग का किसी भी प्रकार से मोहकर्म के वश उपभोग किया जाए, वहाँ पर योग की स्मृति रखकर यह भूल जाना कि 'यह है, तो मैं कैसा सुख अनुभव कर रहा हूँ?' मित्र के साथ, मित्र की तरह साधारण चीज़ का परस्पर उपभोग करते हैं, उसी प्रकार उस चीज़ को लेने का खेद सहित उपभोग करके पूर्वबंधन से छूट जाना। उसके साथ जितना हो सके, उतना निर्विकारी बातें करना।" प्रश्नकर्ता : योग की स्मृति रखना, यानी क्या?
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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