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________________ दृष्टि दोष के जोखिम लिए सबकुछ करते थे! शादी करना, वह तो मदद के लिए शादी करनी होती है, कि संसार में हेल्पिंग हो! अकेला हो, तो क्या करे? कमाने जाए या खाना पकाए? लेकिन यह तो बच्चों के कारखाने खोल दिए! चारआठ होते हैं, किसी के डज़न भी हो जाते हैं ! बच्चों की ज़रूरत नहीं हो, फिर भी विषय में पड़ता है। अरे! बच्चों की ज़रूरत नहीं है तो अब तझे विषय का क्या करना है? लेकिन उसमें उसे टेस्ट आता है! विषय में भला कौन सा सुख है ? श्रीमद् राजचंद्रजी ने तो कहा है कि, 'यह तो वमन करने योग्य भूमिका भी नहीं है। थूकने को कहे तो भी अच्छा नहीं लगे।' अन्य जगह पर थूक सकते हैं, लेकिन यहाँ तो हमें थूकने में भी शर्म आए। लोग कैसा मान बैठे हैं ? सब उल्टा ही मान बैठे हैं न?! कृपालुदेव ने कहा है स्त्री के बारे में.... कृपालुदेव के पत्र में क्या लिखा है ? "स्त्री के संबंध में मेरे विचार।" __ "अति अति स्वस्थ विचारणा से यह सिद्ध हुआ है कि शुद्धज्ञान के आश्रय में निराबाध सुख है तथा वहीं पर परम समाधि है। स्त्री, वह संसार का सर्वोत्तम सुख है, यह मात्र आवरणिक दृष्टि से कल्पना की गई है, लेकिन वह ऐसा है ही नहीं। स्त्री से संयोग सुख भोगने का जो चिन्ह है, उसे विवेक से दृष्टिगोचर करने पर वमन करने योग्य भूमिका के योग्य भी नहीं रहता।" कृपालुदेव क्या कहते हैं कि वह स्थान वमन करने योग्य भी नहीं है, इसलिए किसी अन्य अच्छी जगह पर उल्टी करना। फिर आगे क्या कहते हैं कि, "जिन-जिन पदार्थों पर जुगुप्सा रही है, वे-वे पदार्थ तो उसके शरीर में हैं और वही उनकी जन्मभूमिका है।" जन्मभूमिका क्यों कहा है कि यह जन्मभूमिका वैसे ही कचरे को जन्म देती है!
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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