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________________ दृष्टि दोष के जोखिम २७ से ही जो माल अधोगति में ले जाए, वह माल कैसा होगा? इसीलिए लोग कहते हैं न कि, 'भाई, प्रभावशाली से मिलना ताकि अपने भाव उच्च हो, और हम पर उनका प्रभाव पड़े। और आकर्षक चमड़ीवाले को तो देखते ही, जो ज्ञान होगा वह भी चला जाएगा। प्रश्नकर्ता : दादा, अपना यह जो भरा हुआ माल है, वह इसी जन्म में बदल जाएगा न? दादाश्री : वह तो सारा बदल जाएगा। हमने बदलने का निश्चय किया तो सबकुछ बदल ही जाएगा न! यह तो सारा पुराना नुकसान। अब वह धंधा बंद कर दिया। तीर्थंकर भगवान महावीर की त्वचा आकर्षक नहीं थी। भगवान सुडौल होते हैं। उनमें मोह की प्रकृति होती ही नहीं न! मोह प्रकृति, वही आकर्षक चमड़ी है। मोही प्रकृतिवालों की आँखें भी विकारी होती हैं। और फिर आज के जीव क्या मानते हैं कि, 'मैं कितना सुंदर हूँ!' अरे ! तेरी क़ीमत ही नहीं है दुनिया में! प्रभाव नहीं पड़ता। बल्कि, देखते ही ऐसा भाव होता है कि जो अधोगति में ले जाए और जो ज्ञान हो, वह भी चला जाए। पुरुष लड़कियों को देखें, तो देखते ही ज्ञान चला जाता है और लड़कियाँ पुरुषों को देखें, तो देखते ही ज्ञान चला जाता है। इसलिए ऐसे माल को देखना ही नहीं है। जिससे प्रभाव उत्पन्न हो, अपने भाव बदलें, विचार बदलें, ऐसे माल को देखना। यह तो सारा कचरा माल, 'रबिश', बिकाऊ माल! ऐसा दुनिया में कोई कहेगा ही नहीं न? ऐसी बात बताई ही नहीं है न! दुनिया जानती ही नहीं है यह! लोग ऐसा समझते हैं कि कैसा देहकर्मी है यह! अरे, देहकर्मी का क्या करना है? उससे तो लोगों की अधोगति होती है ! मनुष्य तो कैसा होना चाहिए? प्रभावशाली होना चाहिए कि जिसे देखते ही अपने मन में अच्छे विचार आएँ, हम संसार भूल जाएँ। इसीलिए तो लोग प्रभावशाली का गुणगान करते थे। चमड़ी की क़ीमत तुझे समझ में आई न?
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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