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________________ २८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : 'जीरो वेल्युएशन।' दादाश्री : यह रेशमी चादर से बाँधा हुआ माल है। उसमें माँस, खून, पीप, सारी गंदगी है। गटर वगैरह सबकुछ इसमें है। यह तो लोग अभानता में, बिना भान के चलते हैं। यह माल यदि चादर में बाँधे बगैर दिया जाए तो कितने लोग खुश होंगे? प्रश्नकर्ता : कोई छूएगा तक नहीं। दादाश्री : अरे! देखेगा भी नहीं। देख भी ले तो तुरंत बाहर थूक दे! अरे, तो फिर यह तेरे पेट में क्या है? यह तो फिर हाथ भी घुमाता रहता है और फिर विषय की आराधनाएँ चलती हैं। जाँचो विषय का पृथक्करण एक भाई को वैराग्य नहीं आ रहा था। इसलिए मैंने उसे 'थ्री विज़न' दिया। फिर 'थ्री विज़न' से उसने देखा, तो उसे बहुत वैराग्य आ गया। तुझे ऐसे देखना पड़ता है क्या? प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा उपयोग देना पड़ता है। दादाश्री : ऐसा? यानी अभी तक मोह है न? प्रश्नकर्ता : हाँ, अभी भी ऐसे कभी मोह सवार हो जाता है। मान लो बीवी अच्छे कपड़े पहनकर ऐसे चले तो फिर अंदर मूर्छा उत्पन्न हो जाती है। दादाश्री : ऐसा? तब जब जापानीज़ पुतले को अच्छे कपड़े पहनाते हैं, वहाँ क्यों मोह नहीं होता? स्त्री की मृतदेह हो और उसे अच्छे कपड़े पहनाए जाएँ तो मोह होगा? प्रश्नकर्ता : नहीं होगा। दादाश्री : क्यों नहीं होगा? तो इन सभी को किस पर मोह होता है? स्त्री है, कपड़े अच्छे पहने हैं, लेकिन मुर्दा हो और अंदर आत्मा नहीं
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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