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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) हैं। ऐसे सब ये कुदरत के नियम हैं। हमें तो अब यह 'ज्ञान' हाज़िर रहना चाहिए। जो-जो आकर्षणवाला माल होता है, आकर्षक माल होता है, वह सब बिक जाता है। लड़के-लड़कियाँ सब बिक जाते हैं! प्रश्नकर्ता : ऐसा आकर्षणवाला माल किस आधार पर होता है? दादाश्री : मोह ज़्यादा होता है, इसलिए फिर माल ऐसा आकर्षक होता है। उसे मूर्छित कहा जाता है। मोह कम होने के बाद फिर सभी अंग सुडौल होते हैं, लेकिन चमड़ी आकर्षक नहीं होती। सुडौल होते हैं इसलिए वे सुंदर कहे जाते हैं। चमड़ी आकर्षक हो तो उसे रूप नहीं कहते। वह तो एक तरह का बाज़ारू माल कहलाता है। जिसकी खरीदारी-बिक्री होती ही रहती है। इन सभी को आम लाने भेजें, तो वे कैसे लाएँगे? ऊपर से सुंदर दिखें, वैसे लाएँगे। फिर अंदर से वे खट्टे निकलेंगे या कैसे, वह तो फिर भगवान ही जानें! खुला सुंदरता का रहस्य प्रश्नकर्ता : अभी अपना जो है वह निकाली है, वह ठीक है, लेकिन अगला जन्म जो होगा, उसमें तो सब सुडौल, सुंदर और भव्य होगा न? दादाश्री : तब तो अंग-उपांग सब सुडौल होंगे, लेकिन चमड़ी (त्वचा) ऐसी आकर्षक नहीं होगी। आकर्षक चमड़ी तो हल्की जातिवालों की होती है, जो मोही जाति होती है। जो भोगे जानेवाले हों वहीं पर चमड़ी आकर्षक होती है। जबकि उच्च जाति में चमड़ी आकर्षक नहीं होती, आकार बहुत सुंदर होता है, आँख, कान, नाक, कपाल वगैरह सुंदर होते हैं। वे सब सुडौल होते हैं। जो प्रभावशाली होते हैं, उन्हें देखते ही प्रभाव पड़ता हैं यानि कि अपने भाव बदल जाते हैं, जबकि आकर्षक चमड़ीवाले को देखकर ऐसे भाव हो जाते हैं कि जो अधोगति में ले जाएँ। बोलो, तब फिर देखने मात्र
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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