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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दे तो आपकी दृष्टि खिंच जाएगी। कोई लोभी हो और उसे लोभ दे तो भी दृष्टि खिंच जाती है। फिर पूरा जीवन मटियामेट कर देता है! अत: सावधान कहाँ रहना है कि स्त्री को पुरुष से और पुरुष को स्त्री से, बिल्कुल लप्पन छप्पन नहीं करनी चाहिए, वर्ना वह तो भयंकर रोग है! उस विचार से ही मनुष्य को बेशुद्धि रहती है! तो फिर आत्मा की जागृति कब होगी? यानी कि इतना सावधान रहना है । क्या इसमें कुछ मुश्किल है? प्रश्नकर्ता : वहाँ सावधान रहना चाहिए। दादाश्री : इतनी सी चीज़ से ही दूर रहने जैसा है। अन्य सभी चीजें हम छुड़वा देते है, रास्ता निकाल लेते हैं, लेकिन यहाँ तो चेतन मिश्रित हुआ न? यानी स्त्री-पुरुष दोनों को सावधान रहने जैसा है, भयंकर जोखिम है! हमेशा नज़रे झुकाकर ही रखना, हमारे मार्ग में अन्य कोई रोक नहीं है। घर में भी यही बातचीत करते रहना। ताकि घर के सब लोग समझ जाएँ कि दृष्टि ऊपर उठाने जैसी है ही नहीं। 'वैराइटीज़ ऑफ पैकिंग्स' हैं ! इनका अंत आए, ऐसा नहीं है, लेकिन इतनी अधिक जागृति भी नहीं रह पाती। इसलिए तय ही कर लेना कि जो होना हो वह हो, लेकिन दृष्टि गड़ानी ही नहीं है। वर्ना बीज तो बहुत बड़े डल जाएँगे, जो अगला जन्म खत्म कर देंगे! वह जहाँ जाएगी, वहाँ इसे भी जाना पड़ेगा और फिर खत्म हो जाएगा। नहीं मिलाना दृष्टि कभी प्रश्नकर्ता : व्यवहार में एक-दूसरों को मान देना, वह तो कुछ बुरा नहीं कहलाता न? दादाश्री : मान देना, लेकिन दृष्टि नीची रखकर। दृष्टि बिगड़ते ही तुरंत पता चल जाता है। मान में तो तुरंत दृष्टि बिगड़ती है। इतना ही जोखिम है, अन्य कोई जोखिम नहीं है। आपको यह सब काम आएगा क्या?
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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