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________________ दृष्टि दोष के जोखिम उसे समझ में कैसे आए? ज़रा सोच न, कि मेरी इच्छा नहीं है, तो फिर इस देह को खींच कौन रहा है? यह देह तो आलपिन जैसी है। यदि लोहचुंबक सामने रखोगे तो पिन हिलने लगेगी! इस देह में 'इलेक्ट्रिकल बॉडी' है। इसलिए समान परमाणु मिलने पर 'बॉडी' खिंचती है। लेकिन यह तो कहेगा कि, 'कल से अब देह को खाना नहीं देना है, इस देह को अब भूखा रखूगा।' अरे ! गलती ढूँढ निकाल न! यह तो पूरण-गलन (चार्ज होना-डिस्चार्ज होना) है। तूने पूरण किया है, तो गलन होगा ही। इसलिए मूल 'रूट कॉज़' खोज निकाल। लेकिन 'रूट कॉज़' खुदको, अपने तरीके से कैसे मिलेगा? वह तो ज्ञानीपुरुष बता सकते हैं। इसलिए ज्ञानी को ढूँढो! और ज्ञानी तो कभी-कभार ही होते हैं, वे तो अति-अति दुर्लभ हैं! कोई स्त्री बाहर सब्जी-भाजी लेने निकले, तब किसी पुरुष को देखकर उसका चित्त वहाँ चिपक जाता है। ऐसे चित्त चिपकने से बीज डल जाते हैं। आते-जाते ऐसे पच्चीस-पचास पुरुषों के साथ बीज डलते हैं। ऐसा प्रतिदिन होता रहता है, ऐसे अनेक पुरुषों के साथ बीज डलते हैं। ऐसा ही पुरुषों को स्त्रियों के प्रति होता है। अब, अगर ज्ञान हाज़िर रहे तो बीज डलने बंद हो जाए, फिर भी प्रतिक्रमण करने पर ही निबेड़ा आएगा। ये बीज तो मिश्रचेतन के संग डलते हैं। फिर मिश्रचेतन दावा करेगा। मिश्रचेतन तो कैसा होता है कि दोनों की मरज़ी में डिफरेन्स, दोनों का संचालन अलग। वहाँ खुद की इच्छा नहीं हो, फिर भी यदि सामनेवाले को सुख भोगने को चाहिए, तो क्या होगा? उसमें से फिर राग-द्वेष के कारखाने शुरू होंगे। अपने पास तो ज्ञान है, इसलिए शुद्धात्मा देखकर, जो चित्त पर चिपका था उसे धो देना। वर्ना यदि चित्त चिपके तो उसका फल दो-पाँच हज़ार सालों बाद भी आ सकता है! इस कलियुग की वजह से स्त्री-पुरुषों में आमने-सामने असर होता है। दोनों को संतोष हो, फिर भी यदि बाहर कुछ देखे, तो दृष्टि गड़ जाती है। वह सबसे बड़ा भय सिग्नल है। इस दृष्टि में मिठास बर्ते, वह भी बहुत बड़ा जोखिम है। आप यदि मानी हों और आपको यदि कोई स्त्री मान
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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