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________________ दृष्टि दोष के जोखिम कुछ लोगों को कैसा होता है कि मान की गाँठ विषय के लिए ही रक्षा करती है। अत: उसका विषय खत्म होते ही मान की गाँठ छूट जाएगी। कुछ लोगों में पहले मान की गाँठ होती है, और बाद में विषय होता है, यानी मान की गाँठ के आधार पर विषय होता है और कुछ लोगों को विषय के आधर पर मान की गांठ होता है! अत: एक का आधार निराधार हुआ कि दूसरा गायब हो जाता है। प्रश्नकर्ता : किसी स्त्री को हम बहन मानें, बेटी मानें या माता माने, तो फिर उसके लिए हमें बुरा भाव नहीं होगा न? दादाश्री : मानने से कोई फल नहीं मिलता, माना हुआ रहता ही नहीं न! लोग तो सगी बहन के साथ भी 'व्यवहार' करते हैं! ऐसे कई उदाहरण मैं जानता हूँ। अतः माना हुआ कुछ भी रह नहीं पाता। प्रश्नकर्ता : तो उसका अर्थ यह कि हर एक बात में सावधान रहना चाहिए? दादाश्री : बहुत ही सावधान रहना चाहिए और यह तो दादा की आज्ञा है न! इसलिए यह आज्ञा तो, खास तौर पर सभी को दी हुई ही है! जिसे जीतना है, उसे हमारी इस सबसे बड़ी आज्ञा का पालन करना है। बाकी, माना हुआ कुछ भी रहता नहीं है। प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा भाव से देखें, तो फिर परेशानी ही नहीं होगी न? दादाश्री : शुद्धात्मा भाव से तो देख ही लेना है। लेकिन दृष्टि तो गड़ानी ही नहीं चाहिए। आपको कोई नमस्कार करे और दो मीठे शब्द बोले तो तुरंत उस पर आपकी दृष्टि मिठासवाली हो जाएगी और फिर उसकी दृष्टि आपके लिए बिगड़ेगी। अतः कोई मान देना शुरू करे, तभी से उसे दुश्मन मान लेना। व्यवहार में साधारण मान दे तब तो कोई हर्ज नहीं है, लेकिन यदि दूसरे प्रकार का मान दे, तभी से हमें समझ जाना चाहिए कि ये अपने दुश्मन हैं, हमें खड्डे में ले जाएँगे!
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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