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________________ विषय नहीं, लेकिन निडरता वही विष १३ ऐसी कोई दवाई बताइए कि जिससे सामनेवाले व्यक्ति का प्रतिक्रमण करें, कुछ करें तो कम हो जाए। दादाश्री : वह तो इसे समझने से, बात समझाने से कि 'दादा ने कहा है कि यह तो बार-बार पीते रहने की चीज़ नहीं है। ज़रा सीधे चलो न।' यानी महीने में छ:-आठ दिन दवाई पीनी चाहिए। अपना शरीर अच्छा रहेगा, दिमाग़ अच्छा रहेगा, तो फाइल का निकाल होगा। वर्ना डिफॉर्म हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : बुख़ार चढ़े ही नहीं; ऐसा कुछ कर दीजिए न। दादाश्री : ऐसा ही कर दिया है, लेकिन आपको अभी तक.... प्रश्नकर्ता : निश्चय कच्चा है। दादाश्री : निश्चय कच्चा है। यह तो इफेक्ट है, यह डिस्चार्ज है, ऐसा करके निश्चय कच्चा पड़ जाता है। प्रश्नकर्ता : समझ में आए, तो वर्तन में आएगा ही न? दादाश्री : समझ में तो आया ही नहीं है। यह बुद्धिपूर्वक का सुख नहीं है। ऐसे समझ में आया ही नहीं है। मैंने जलेबी खाने की छूट दी, खीर खाने की छूट दी है। इस शराब में से जो सुख आता है, वह बुद्धिपूर्वक का सुख नहीं कहलाता। सिगरेट में से जो सुख आता है, वह बुद्धिपूर्वक का सुख नहीं कहलाता। यों देखा-देखी से ही है। एक बार सिर्फ जान लेने की ही ज़रूरत है कि बुख़ार आने पर ही दवाई पीनी चाहिए। फिर उस ओर का तय हो जाए तो फिर मन वैसा ही निश्चय रखता है। क्योंकि उसे आत्मसुख तो मिला ही है न! जिसे किसी भी प्रकार का सुख हो ही नहीं, उसके लिए तो फिर यह विषय सुख है ही। उसे तो हम मोड़ेंगे ही नहीं और उसे तो मोड़ भी नहीं सकते न। जबकि यह तो आत्मा की तरफ का सुख मिला है, इसलिए खुद के इस सुख की ओर मुड़ जाता है और वापस जब मन ज़रा सा भी बाहर कहीं टकराए तो उस समय वह बाहर विषय की ओर नहीं मुड़ता बल्कि अंदर आत्मा की ओर मुड़ जाता है। लेकिन जिसे यह ज्ञान नहीं मिला हो, उसे
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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