SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : पसंद आई न! दादाश्री : ऐसा! पसंद आई हो तो आज से शुरू कर देना। पसंद नहीं हो तो थोड़े दिनों बाद। जल्दी क्या है ? पच्चीस साल बाद ! इसमें थोड़े ही कोई ज़बरदस्ती है? बाकी, सबसे बड़ी जोखिमदारी तो इस विषय की जोखिमदारी है! फिर भी हमने कहा है कि बुख़ार चढ़े तभी दवाई पीना, तो जोखिमदारी हमारी, और आपको मोक्षमार्ग में बाधा नहीं आएगी। यह इतनी सारी जोखिमदारी लेने के बावजूद आप कहते हो कि हमें ठीक से पूरी छूट नहीं देते, तो वह आपकी भूल ही है न? आपको क्या लगता है? अपना यह 'अक्रमविज्ञान' है! स्त्री के साथ रहना। आज सभी शास्त्रों ने स्त्री के साथ रहने को मना किया है, जबकि हम रहने को कहते हैं। लेकिन साथ में यह थर्मामीटर देते हैं। यानी कि स्त्री को दुःख नहीं हो, उस तरह से विषय का व्यवहार रखना। प्रश्नकर्ता : वह बुख़ार चढ़ना बंद होगा या नहीं? दादाश्री : नहीं, वह तो वापस फिर से चढ़ेगा। प्रश्नकर्ता : तो उसे बंद कैसे करें? दादाश्री : उसे बंद मत करना। दोनों को बुख़ार चढ़े और दवाई पीओ तो जोखिमदारी आपकी नहीं है, तब फिर मेरी जोखिमदारी। यदि शौक़ की खातिर दवाई पीओ, तो आपकी जोखिमदारी। मैं जानता हूँ कि आप सभी शादीशुदा हो, यानी सभी को कुछ यों ही ज्ञान नहीं दिया है! लेकिन साथ ही साथ अक्रम की इतनी ज़िम्मेदारी ली है कि यहाँ तक नियम में रहो, तो जोखिमदार मैं हूँ। प्रश्नकर्ता : वाइफ की इच्छा नहीं हो और हज़बेन्ड के फोर्स से दवाई पीनी पड़े तब क्या करें? दादाश्री : लेकिन उसमें तो क्या करें? किस ने कहा था शादी करो? प्रश्नकर्ता : भुगते उसकी भूल। लेकिन दादा कुछ ऐसा बताइए न,
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy