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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) क्या होगा? यह मोक्ष का मार्ग है, इसलिए यहाँ ज़रा इतना ही समझ लेना। आपको यह बात पसंद आई क्या? यह 'अक्रमज्ञान' सही है न? प्रश्नकर्ता : हाँ, सही है। दादाश्री : विषय की उपस्थिति में भी मोक्ष हो सके, ऐसा यह ज्ञान है न! यह हमारी खोज है। बहुत उच्च प्रकार की खोज है! आपको लड्डूजलेबी वगैरह खाने की छूट दे रखी है। कृपालुदेव ने तो क्या कहा है कि, 'मनपसंद थाली आए तो औरों को दे देना।' तो क्या किसी ने कभी औरों को दी है ? एक भी ऐसा जन्मा है कि जिसने अपनी मनपसंद थाली किसी और को दे दी? ये कोई दे दें ऐसे हैं ? वह तो, सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' ही ऐसा कर सकते हैं। जबकि मैंने तो आपसे कहा है कि, 'मनपसंद थाली आराम से खाना! आम खाना, आमरस खाना।' किसी ने भी ऐसी छूट नहीं दी है। अभी तक किसी शास्त्र ने ऐसा नहीं कहा है कि संसारी वेश में ऐसा संभव है। इन सभी शास्त्रों ने तो 'स्त्री से दूर भागो', ऐसा कहा है। लेकिन हमने यह नयी खोज की है! मेरी यह नयी वैज्ञानिक खोज है। चौबीस तीर्थंकरों का इकट्ठा विज्ञान है यह! यहाँ हम आपको खुद की स्त्री या खुद के पुरुष की मर्यादा में ही विषय की छूट देते हैं, उसमें ऐसी ज़िम्मेदारी नहीं रहती। इसीलिए हमने छूट दी है। बाकी शास्त्रकारों ने तो इसे बिल्कुल निकाल ही दिया है कि, 'अरे, स्त्री को छोड़ दो', ऐसा कह दिया। लेकिन यह तो अपना विज्ञान है, इसलिए एक ओर शांति रहे, ऐसा है। और इसीलिए आज्ञा में रहने को तैयार होते हैं। बल्कि छूट दी है। उसका यदि उल्टा अर्थ निकाले तब तो इसमें मार खा जाएगा न? लोकसंज्ञा से फँसा विषय में बाकी, विषय तो लोकसंज्ञा है। सिर्फ बिना सोचे-समझे की हुई बात है। कृपालुदेव ने तो उसका बहुत खराब तरह से वर्णन किया है। वह भूमिका थूकने योग्य भी नहीं है' उसे ऐसा कहा है। उस बात की लोग टीका-टिप्पणी करते हैं ! दुनिया है न! दुनिया को यह बात पसंद नहीं आती
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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