SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) निडरता, वह विष है। अब मुझे कुछ भी बाधक नहीं है, ऐसा होना, वही विष है। प्रश्नकर्ता : निडरता, वह लापरवाही कहलाती है न? दादाश्री : मैंने निडरता शब्द इसलिए दिया है ताकि विषय से डरे। सिर्फ लाचार होकर ही विषय में पड़े। इसलिए विषय से डरो, ऐसा कहते हैं। क्योंकि भगवान भी डरते थे, बड़े-बड़े ज्ञानी भी डरते थे, तो आप ऐसे कैसे हो कि जो विषय से नहीं डरते? मुझे अब कुछ बाधक नहीं है, वही विष है। अत: विषय से डरो। विषय भोगो ज़रूर, लेकिन विषय से डरो। जैसे सुंदर भोजन मिला हो, रस-रोटी वगैरह, वह सब भोगो अवश्य, लेकिन डरते हुए भोगो। डरते हुए किसलिए कि ज़्यादा खाओगे तो तकलीफ हो जाएगी, इसलिए डरो। ___ एक साधु खोज लाओ कि जिसकी आज हम शादी करवाएँ और यदि एक महीना भी घर चला ले, तो वह सच्चा! अरे! यह तो तीसरे दिन ही भाग जाएगा। 'फलाना ले आओ, वह फलाना ले आओ, कहा कि भाग जाएगा। और ये (साधु) लोगों को परेशान करते हैं कि, 'अब आपका क्या होगा?' इसलिए मुझे ये भारी शब्द लिखने पड़े कि 'विषय विष नहीं हैं, जाओ घबराना मत', और कहा, 'मैं आपकी घबराहट निकालने आया हूँ। सहज भाव से विषय भोगो न! सहज होना चाहिए। यदि सहज भाव से विषय भोगे तो विषय विषय को ही भोगते हैं। यह तो, सहज भाव से भोगना आता नहीं है न? प्रश्नकर्ता : यानी विषय में जो पड़ता हैं, उसमें उसकी कोई हिम्मत काम नहीं करती, वह तो उसकी आसक्ति ही करवाती है।। दादाश्री : नहीं, हमें उसमें भी हर्ज नहीं है। निडरता में हर्ज है। यानी 'अब मुझे कुछ भी बाधक नहीं है, मैं भले ही कैसे भी विषय भोगूं, फिर भी मुझे कुछ नहीं होगा।' ऐसी लापरवाही रहे तो, उस लापरवाही को हम निडरता कहते हैं। लोगों ने विषयों को एकांतिक रूप से 'विष' कहा है, इसलिए संसारी 'डिस्करेज' हो गए। तो फिर इन संसारियों को विष ही पीते
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy