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________________ विषय नहीं, लेकिन निडरता वही विष विष कहना ही नहीं चाहता । मैं विषय में निडरता को विष कहता हूँ । आप विषयों को विष कहते हो, वह मैं कबूल नहीं करता। जो अविवाहित है और यदि वह ब्रह्मचारी की तरह रहना चाहता हो तो मैं बहुत खुश हूँ । यदि कोई विवाहित हो तो उसे क्या ऐसा कहेंगे कि पत्नी को छोड़कर भाग जा तू? फिर भी यदि वह पत्नी को छोड़कर भाग जाए और उसका मोक्ष हो जाए, क्या ऐसा कभी हो सकता है ? ऐसा किसी के मानने में आता है क्या? तो फिर शादी क्यों की थी ? शर्म नहीं आती ? किसी को दग़ा नहीं देना चाहिए। इस दुनिया में किसी जीव को किंचित् मात्र भी दुःख दिया होगा तो मोक्ष नहीं होगा । इसलिए हमने यह सरल रास्ता खोज निकाला। वर्ना ये सारे विवाहित लोग कहते हैं कि 'हम मोक्ष में जानेवाले हैं'। वे ऐसा क्यों कह रहे हैं? उन्हें खुद को ऐसा लगा कि 'हम मोक्ष में जाने के लिए इस ओर जा रहे हैं।' 'कितने मील की दूरी पर थे और अब सेन्ट्रल (स्टेशन) कितना पास आ गया', आपको ऐसा लगता है ? प्रश्नकर्ता : नज़दीक है । दादाश्री : बीवी-बच्चे साथ में हैं, बच्चों को पढ़ाता है, सब करता है। स्त्री मोक्ष में बाधा नहीं डालती । आपकी गलती से मोक्ष रुकता है । गलती आपकी है, स्त्री की गलती नहीं है । स्त्री बाधक नहीं है, आपकी अज्ञानता बाधक है। ३ ऐसा है न कि मनुष्यों ने विषय का तो पृथक्करण करके कभी देखा ही नहीं। यदि मानवधर्म के तौर पर, विषय का पृथक्करण करें, जैसे कि हम किसी चीज़ का पृथक्करण करते हैं कि उसमें क्या-क्या चीजें मिली हुई हैं, ऐसे अलग करते हैं । उसी तरह यदि विषय का पृथक्करण करे तो मनुष्य कभी भी फिर विषय करेगा ही नहीं। दो दिन से ज़्यादा के बासी पकौड़े खा ही नहीं सकते । फिर भी यदि तीन महीने के बासी पकौड़े खा लिए हों, तो भी वह जीवित रहेगा, लेकिन विषय करेगा तो वह जीवित नहीं रहेगा। विषय, वह ऐसी चीज़ है कि उसका पृथक्करण करे तो खुद को वैराग्य ही रहा करे । यदि विषय विष होते तो भगवान महावीर तीर्थंकर ही नहीं बन पाते। भगवान महावीर की भी बेटी थी । अतः विषयों में
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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