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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) कि 'अरे, ऐसे यदि विषय ही विष होता तो शादी की ज़रूरत ही क्या थी ? ये तो कुछ ही लोग बिना शादी किए घूमते रहते हैं । बाकी का, सारा जगत् तो विवाहित ही हैं। अतः यदि गलत होता तो सारा जगत् शादी करता ही क्यों?' ये जो शादी किए बिना घूमते रहते हैं, वे तो व्यायामशाला में गए हैं कि स्त्री के बिना जीया जा सकता है या नहीं ? यानी वह तो व्यायामशाला है। बाकी आपको ‘टेस्ट एक्जामिनेशन' में से गुज़रना पड़ेगा, और यहाँ पर स्त्री के साथ, पत्नी-बच्चों के साथ ही वीतराग होना पड़ेगा । भागकर वहाँ हिमालय पर जाकर, वीतराग होकर ( !) 'हमकु क्या, हमकु क्या' ऐसे करता रहा, तो वह नहीं चलेगा। स्त्री डाँटे और रात उसी घर में गुज़ारनी पड़े, वह तो सबसे बड़ा टेस्ट एक्ज़ामिनेशन है ! यानी स्त्री के साथ रहते हुए भी मोक्ष होना चाहिए । स्त्री की गालियाँ खाए फिर भी समता रहे, ऐसा मोक्ष होना चाहिए । भगवान ने आत्मा के दो भेद बताए; एक संसारी और दूसरे सिद्ध । जो मोक्ष में चले गए हैं, वे सिद्ध कहलाते हैं और बाकी के सभी संसारी । अतः यदि आप त्यागी हो, फिर भी संसारी हो और ये गृहस्थ भी संसारी हैं। इसलिए आप मन में कुछ रखना मत । संसार बाधक नहीं है, विषय बाधक नहीं है, कुछ भी बाधक नहीं है, अज्ञान बाधक है। इसीलिए तो मैंने पुस्तक में लिखा है कि विषय विष नहीं हैं, विषय में निडरता, वह विष है । बीवी-बच्चों के साथ रहते हुए भी मोक्ष हो, वह रास्ता हमने दिखाया है। अभी यहाँ से सीधा मोक्ष नहीं है । यह एकावतारी पद है । वीतरागों की बात बिल्कुल सही है कि यदि सीधे ही मोक्ष में जा पाते तो बीवी-बच्चों को इस अंतिम जन्म में छोड़ना पड़ता, लेकिन यह तो एकावतारी पद है। मोक्ष का और संसार का क्या लेना-देना? एक भी कर्म नहीं बँधेगा, उसकी हम गारन्टी देते हैं। स्त्री - बच्चों के साथ रहते हुए भी कर्म नहीं बँधेगा । स्त्री की नहीं, गलती खुद की 'विषय विष नहीं है' सिर्फ ऐसा कहा जाए तो कितने ही त्यागियों के साथ मतभेद हो जाएगा कि 'आप ऐसा कहते हैं ?' नहीं, मैं विषय को
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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