SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय भोग, नहीं हैं निकाली परिचय है न? अँगीठी में हाथ डाले उसमें भी हर्ज नहीं है, लेकिन नई फिल्म बनाता है, उसमें हर्ज है। प्रश्नकर्ता : तो फिर यह विषय - विकार क्यों हो जाता है ? दादाश्री : वह तो हो जाता है और आपकी बात अलग है। आप तो शादीशुदा हो। आपको तो 'समभाव से निकाल' करना है । यदि शादी कर लें तो इन्हें भी ‘समभाव से निकाल' करना पड़ेगा, वर्ना पत्नी को दु:ख पहुँचेगा। लेकिन अपना ज्ञान ऐसा है कि जिसे ब्रह्मचर्यव्रत लेना हो, वह उसमें रह सकता है। ‘मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा निरंतर, जिसके लक्ष्य में रहता है, वही सबसे बड़ा ब्रह्मचर्य । लेकिन जिसे व्यवहार में 'चारित्र' लेने की इच्छा है, उसे बाहरी ब्रह्मचर्य की ज़रूरत है । २३३ यह ज्ञान ऐसा है कि एकावतारी बना दे, लेकिन सतर्क रहना चाहिए और मन में ज़रा सा भी दग़ा नहीं रखना चाहिए । यह विषय शौक की चीज़ नहीं है, निकाल करने जैसी चीज़ है। उसे मिले एकावतारी बॉन्ड प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, एक जन्म में ही मोक्ष पाना हो, तो क्या करना चाहिए? वह बताइए न! आज हम वही तय कर लें । दादाश्री : एक जैन हो, उसे पुलिसवाला पकड़कर तीन दिन भूखा रखे और फिर माँस खाने को दे और कहे कि तुझे यही खाना पड़ेगा और फिर वह उसे खाए, तो वह बंधन में नहीं आता । ऐसा पुलिसवाले के दबाव से है, उसकी खुदकी इच्छापूर्वक नहीं है। मनुष्य अगर उसी तरह विषय भोगेगा तो वह एकावतारी बनेगा, उसका दूसरा जन्म नहीं होगा । विषय स्वाधीन नहीं होना चाहिए। पुलिसवाले के अधीन, भूख के अधीन होकर माँसाहार करो तो आप गुनहगार नहीं हो । वैसा ही यदि विषय में रहेगा, तो वह अवश्य ही एकावतारी बनेगा। I प्रश्नकर्ता : आपकी इस आज्ञा का पालन करेंगे। अब एकावतारी पद लिख दीजिए।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy