SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४ ] विषय भोग, नहीं हैं निकाली विषय भोग को 'निकाली बात' कौन कह सकता है ? 'यह' ज्ञान लेने के बाद विषय के अलावा अन्य कोई चीज़ बाधक नहीं है और जो अहंकार बाधक है, वह अहंकार हमने ले लिया है। अब इसमें सिर्फ विषय ही एक ऐसी चीज़ है कि जो कभी-कभार मार खिला दे। विषय तो जलन शांत करने का एक तरह का साधन है । आपमें तो निराकुलता उत्पन्न हो गई है, अतः इस सुख की ज़रूरत ही कहाँ रही? आपने तो अब आत्मा प्राप्त कर लिया है । लेकिन अभी तक मन में घुसा नहीं है, जोखिम मालूम ही नहीं है न ? हिसाब ही नहीं लगाया है न? वर्ना ऐसी हिंसा कौन करे ? भगवान यदि कभी विषय से होनेवाली हिंसा का वर्णन करें तो मनुष्य मर जाए। लोग समझते हैं कि इसमें क्या हिंसा है? हम किसी को डाँट नहीं रहे हैं। लेकिन भगवान की दृष्टि से देखें तो इसमें हिंसा और आसक्ति दोनों साथ में हैं, इसलिए पाँचों महाव्रत टूटते हैं। और उससे बहुत दोष लगते हैं, एक ही बार के विषय से लाखों जीव मर जाते हैं । उसका दोष लगता है। यानी इच्छा नहीं होने के बावजूद भी इसमें भयंकर हिंसा है । अतः रौद्र स्वरूप हो जाता है । वर्ना यह ज्ञान प्राप्त होने के बाद तो निरंतर समाधि रहे, ऐसा है यह ज्ञान । अतः जब तक संसारीपन है, स्त्री विषय है, तब तक वह अहिंसा का घातक ही है I इस देह के संग विषय हैं, इसलिए पुरुषार्थ में कच्चा पड़ जाता है। वर्ना, जिस दिन ज्ञान देता हूँ, तब वास्तविक आनंद का अनुभव करता है । लेकिन दूसरे दिन फिर अँगीठी में हाथ डाल देता है । क्योंकि अनादि का
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy