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________________ २३४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दादाश्री : यदि हमारी इतनी सी बात का पालन करे तो हम एकावतारी बॉन्ड लिख देंगे। एकावतारी बनना हो तो यही एक चीज़ सँभालनी है। बाकी अन्य व्यापार-धंधे में हर्ज नहीं। ब्रह्मनिष्ठा बिठाएँ ज्ञानी विषयों का स्वभाव कैसा है? आज से दस दिन के लिए विषय बंद, ऐसा तय करें तो उस अनुसार चलता रहेगा और तीसरे दिन से ही आनंद बढ़ने लगेगा, लेकिन यदि विषय में पड़ा तो फँसा। फिर बाहर नहीं निकल पाएगा। विषय के बारे में निर्णयात्मक होना चाहिए। निष्ठा अपने आप नहीं बैठती, वह तो ज्ञानीपुरुष ही बैठा सकते हैं। जगत् पर से निष्ठा उठाने के लिए और ब्रह्म में निष्ठा बैठाने के लिए हमें ज्ञान देना पड़ता है। प्रश्नकर्ता : आप ब्रह्म की निष्ठा बैठाते हैं तो ब्रह्मचर्य की निष्ठा क्यों नहीं बैठाते? दादाश्री : यदि शादीशुदा है, तो क्या उसमें मैं हस्तक्षेप करूँगा? वह तो, यदि यहाँ आकर माँग करे तो हम देते हैं। यह ज्ञान हो, फिर भी एक्ज़ेक्ट ब्रह्मचर्य के बिना आत्मानुभव तो नहीं हो सकता। वास्तविक आनंद और हमारे जैसा पद, यह सब चाहिए तो संपूर्ण ब्रह्मचर्य होना चाहिए और ठेठ अंत में तो विषय के प्रति चिढ़ भी नहीं और राग भी नहीं रहे, ऐसा हो जाए तब वास्तविक अनुभव होता है। लेकिन पहले तो विषयों के प्रति चिढ़ उत्पन्न होनी चाहिए। ताकि फिर चित्त और अधिक शोध करे और ऐसा करते-करते चित्त छूटता जाएगा, फिर अंत में चिढ़ भी नहीं रहेगी। उदयकर्म के नाम पर पोल प्रश्नकर्ता : हमारे जैसे शादीशुदा हों, जिन्हें कभी विषय में पड़ना पड़े, लेकिन अंदर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगे, तब भी आत्मा का अनुभव नहीं होगा? दादाश्री : कुछ अंशों तक हो सकेगा, लेकिन हमारे जैसा नहीं हो सकेगा।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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