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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) संसार खड़ा हो गया। यह जगत् खुली आँखों से देखने योग्य है ही नहीं । उसमें भी कलियुग में तो भयंकर असर होता है। इन आँखों से तो पूरा संसार खड़ा हो जाता है। २०६ इस जगत् में तो सभी चीजें ऐसी ही हैं न कि जो भ्रमित करें ? जहाँ मन ही कच्चा है, वहाँ क्या हो सकता है ? इसमें देखने जैसा है ही क्या? यह तो देखने की बुरी आदत है । जो दिखाई देता है, उसके प्रति मोह होता है । इन्सान को तो इन सभी पर्यायों का ज्ञान है नहीं! यदि खाने के बाद उल्टी हो जाए तो जो उल्टी हुई, वह खाया था उसीका हिस्सा है, ऐसा एट- ए - टाइम लक्ष्य में नहीं रहता न ? जैसे कि ये आम होते हैं, उनमें बौर आते हैं, फिर फल लगते हैं, छोटे-छोटे आम आते हैं। वे कसैले लगते हैं, फिर खट्टे होते जाते हैं, उसके बाद मीठे होते हैं । वे ही फिर सड़ जाते है, बिगड़ जाते है, बदबू मारते हैं । ये सारे पर्याय एट-ए-टाइम हाज़िर रहें तो फिर आम के प्रति मोह ही नहीं होगा न ? खाने लायक, देखने लायक तो सत्युग में था । आज की स्त्रियाँ देखने लायक नहीं होतीं, पुरुष देखने योग्य नहीं होते । ये तो बिगड़े हुए आम जैसे दिखते हैं । अरे! इस बिगड़े हुए माल में देखने जैसा क्या लगता है तुझे ? स्त्री, वह पुरुष का संडास है और पुरुष, वह स्त्री का संडास है I जिन्हें मोक्ष में जाना है, उन्हें स्त्री जाति को या स्त्री को पुरुष जाति को दृष्टि गड़ाकर देखना ही बंद कर देना चाहिए । वर्ना इसका निबेड़ा ही नहीं आएगा। यह चमड़ी निकाल दी जाए तो क्या दिखाई देगा ? लेकिन ये लोग तो यों भी इतनी बदबू मारते हैं कि ऐसा होता है कि 'न जाने ये कैसे लोग हैं ?' पहले के समय में ऐसी स्त्रियाँ होती थीं, पद्मिनी - स्त्रियाँ, जिनकी सुगंध आती थी। कुछ दूरी पर बैठी होतीं फिर भी यहाँ तक सुगंध आती थी। आजकल तो पुरुषों में बरकत ही नहीं है और स्त्रियों में भी बरकत नहीं है। सारा फेंक देने जैसा माल, निकाल देने जैसा माल है, रबिश मटिरियल्स। उसके प्रति फिर मोह करता है । अरे ! इसमें मोह करने जैसा क्या लगा तुझे ? क्यों, गोरी चमड़ी है, इसलिए ? सीलबंद पेट्रोल के डिब्बे हों, जिनमें से हवा तक न निकल पाए ऐसे हों, फिर भी इस रूम में कोई
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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