SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयी-स्पंदन, मात्र जोखिम १९५ हैं कि अन्य पाँच इन्द्रियों के विषय के नहीं, लेकिन स्त्रियों से और पुरुषों से एक ही बात कहते हैं कि जहाँ कहीं स्त्री-विषय या पुरुष-विषय से संबंधित विचार आया कि तुरंत वहीं के वहीं आप प्रतिक्रमण कर लेना। 'ऑन द स्पॉट' तो कर ही लेना। लेकिन बाद में उसके सौ-दो सौ प्रतिक्रमण कर लेना। कभी यदि होटल में नाश्ता करने गए और उसका प्रतिक्रमण नहीं किया होगा तो चलेगा। मैं उसका प्रतिक्रमण करवा लूँगा। लेकिन यह विषय से संबंधित रोग नहीं घुसना चाहिए। यह तो भारी रोग है। इस रोग को निकालने की औषधि क्या? तब कहे कि प्रत्येक मनुष्य को जहाँ अटकन होती है, वहाँ पर यह रोग होता है। कोई स्त्री जा रही हो, तो उसे देखते ही किसी पुरुष में तुरंत अंदर वातावरण बदल जाता है। अब यों तो सभी, हैं तो तरबूजे ही लेकिन वह तो सविस्तार उसका रूप ढूँढ निकालता है। इस फूट (बड़ी ककड़ी) के ढेर पर कुछ राग होता है? लेकिन इन्सान हैं इसलिए इन्हें रूप की पहले से आदत है, 'ये आँखें कितनी अच्छी हैं, इतनी बड़ी-बड़ी आँखें है।', ऐसा कहते हैं। 'अरे, इतनी बड़ी-बड़ी, अच्छी आँखें तो उस भैंस के भाई की भी होती हैं, वहाँ पर क्यों राग नहीं होता तुझे? तब कहे वह तो भैंसा है और यह तो इन्सान है। अरे! यह तो फँसने की जगह हैं। देखतभूली यदि टले तो अक्रम विज्ञान क्या कहता है कि फर्स्ट क्लास हाफूस आम देखने में हर्ज नहीं। तुझे सुगंधी आई उसमें भी हर्ज नहीं, लेकिन भोगने की बात मत करना। ज्ञानी भी आम को देखते हैं, सूंघते हैं ! ये विषय जो भोगे जाते हैं, वे तो 'व्यवस्थित' के हिसाब के अनुसार भोगे जाते हैं। वह तो 'व्यवस्थित' है ही! लेकिन बिना वजह बाहर आकर्षण हो न, उसका क्या अर्थ है ? जो आम घर पर आनेवाले नहीं हैं, उनके प्रति आकर्षण रहे, वह जोखिम है सारा। उससे कर्म बँधेगे! श्रीमद् राजचंद्रजी ने कहा है कि, 'देखतभूली टले तो सर्व दु:खों
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy