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________________ १९४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : यह तो बहुत गूढ़ है। दादाश्री : इसे समझने बैठे तो बहुत गहन है, लेकिन फिर भी आसान है। कहीं पर भी विरोधाभास उत्पन्न नहीं होता। यह सैद्धांतिक ज्ञान है और सबल अनुभवजन्य ज्ञान है। अपना तो यह अक्रम मार्ग है, इसलिए हमने खाने-पीने की छूट दी है, हर प्रकार से छूट दी है, लेकिन हम विषय के सामने सावधानी रखने को कहते हैं! बाकी, विषय से तो भगवान भी डरते थे। अपने यहाँ तो सिनेमा की भी छूट दी है। क्योंकि सिनेमा में ऐसा तन्मयाकार नहीं होता, जबकि विषय में तो अत्यधिक तन्मयाकार हो जाता है। मनुष्य का स्वभाव हरहाया है। हरहाया मतलब जहाँ देखा वहाँ मुँह डाला, जहाँ देखा वहाँ मुँह डाला। बाकी सभी चीज़ों में रूप देखना है, इसमें रूप है ही कहाँ कि उसे देखें? ये तो ऊपर से ही सुंदर दिखते हैं। आम तो अंदर से कच्चा हो, फिर भी स्वादिष्ट लगता है और दुर्गंध भी नहीं आती और इसे यदि काटें तो दुर्गंध का अंत ही नहीं आए! अत: यहीं पर माया है। पूरे जगत् की माया यहीं भरी पड़ी है। स्त्रियों की माया पुरुषों में है और पुरुषों की माया स्त्रियों में है। प्रश्नकर्ता : इसी कारण सब अटका हुआ है न? दादाश्री : हाँ, इसी कारण अटका हुआ है। सबसे बड़ी अटकन विषय की कृपालुदेव को लल्लूजी महाराज ने सूरत से पत्र लिखा था कि हमें आपके दर्शन करने मुंबई आना हैं। तब कृपालुदेव ने कहा कि मुंबई मोहमयी नगरी है, साधु-आचार्यों के लिए यह काम की नहीं है। यहाँ तो जहाँ-तहाँ से मोह घुस जाएगा। आपके मुँह में से नहीं घुसेगा तो कान से घुस जाएगा, आँख से घुस जाएगा। आखिर में हवा जाने के छिद्र हैं, वहाँ से भी मोह घुस जाएगा! इसलिए यहाँ आने में फायदा नहीं है। इसका नाम कृपालुदेव ने क्या रखा, मोहमयी नगरी। उसमें मैंने आपको यह 'ज्ञान' दिया है। अब क्या वह मोहमयी गायब हो गई है ? क्या बी-ओ-एम-बी-एवाय, बोम्बे हो गया? नहीं, मोहमयी ही है। इसलिए हम आपसे कहते
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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