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________________ विषयी-स्पंदन, मात्र जोखिम भोग लिए जाने के बाद गुठलियाँ पड़ी रहती हैं, लेकिन इसमें मरते समय गुठली साथ में लेकर जाते हैं। विषय यदि मजबूरन भोगना पड़े तो वह विष नहीं है। तू पैसे खुलकर खर्च करता है या मजबूरन? यह तो सिर्फ पैसों की ही बात है, लेकिन एक ही बार के विषय में तो कितने ही अरबों का नुकसान है, भयंकर हिंसा है। पैसों की इतनी क़ीमत नहीं है, पैसा तो फिर से आ जाएगा। ये सारे हिसाब भुगतने पड़ेंगे। जितने हिसाब बाँधने हों, उतने बाँधना। जितनी ताकत हो, उतने हिसाब बाँधना। बाकी, यदि भुगतते समय सहन नहीं हो और चीखे-चिल्लाए, उसके बजाय पहले से ही सावधान रहकर हिसाब बाँधना। वे सारे हिसाब चुकाने तो पड़ेंगे न? विषय की वेदना से तो नर्क की वेदना अच्छी। यह विषय तो वापस बीज डालता है। नर्क में बीज नहीं डलते, नर्क में सिर्फ भुगतना ही होता है, डेबिट चुकता हो जाता है। और यदि क्रेडिट होगा तो वहाँ देवगति में पूरा होगा। जबकि विषय में तो नये बीज पड़े बगैर रहते ही नहीं। ऐसे विचार तो हमें बचपन से ही आते थे, बहुत सोच चुके हैं हम। _ 'गणे काष्ठनी पूतडी, ते भगवान समान' अब काष्ठ की पुतली कैसे माने? ऐसा मानना कोई आसान बात है ?! ये लोग तो, यदि सचमुच काष्ठ की पुतली लाकर दे दें फिर भी उसे आलिंगन करते रहें, ऐसे हैं! अब यहाँ देखे और वैराग्य आए, वह तो भगवान ही कहलाएगा। हड्डियाँ, माँस और खून से भरी हुई यह देह, इसके जैसी जगत् में कोई गंदगी नहीं है। जब इसी देह से मोक्ष का काम निकाल दे तो उसके जैसा उत्तम और कुछ भी नहीं! मनुष्य देह है, उससे जिस तरह का काम निकालना हो, वैसा हो सकता है। ब्रह्मचर्य से तो मन को संस्कारी बनाना है और ज्ञान समझना है कि कहीं पर भी आकर्षण नहीं हो। मुझे ये स्त्री-पुरुष कैसे दिखाई देते हैं? पहले बिल्कुल नंगे दिखाई देते हैं, फिर चमड़ी निकाल दी गई हो, ऐसे दिखाई देते हैं। इससे फिर वैराग्य ही रहेगा न? वैराग्य कहीं मार-पीटकर नहीं आता, वह तो ज्ञान से आता है।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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