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________________ लो व्रत का ट्रायल १५३ तय किया तभी से ऊर्वीकरण शील के ऊर्वीकरण की शुरूआत करनी हो तो हो सकता है। ब्रह्मचर्यव्रत लेकर तय किया, वहीं से ऊ/करण। कितने आनंद में रहते हैं! यह तो, अपने आत्मा का आनंद रहता ही नहीं। अरे, इसी में खो जाते हैं। चेहरे भी उतरे हुए रहते हैं। पूरा दिन लालच और सिर्फ लालच में! अब इतने साल बीत गए, क्या समझना नहीं चाहिए? अब सावधान रहकर चलना अच्छा। और वह कंट्रोल तो रखना ही पड़ेगा। कंट्रोल नहीं रखे तो इन्सान के कंट्रोल करने के विचार भी चले जाते हैं फिर । सबकुछ खुल जाता है, वह सब। इसलिए कई लोग तो कंट्रोल रखकर, यदि दोष हो जाएँ, तो उन दोषों की माफ़ी माँग लेते हैं, बस। लेकिन यदि कंट्रोल ही चला जाए तो फिर कुछ रहेगा ही नहीं। इसलिए अभी साल-दो साल आप अलग रहो। आप अभ्यास करके देखो कि यदि उससे कोई फ़ायदा हो रहा हो तो, वर्ना फिर इस प्रकार से ले लेना। और फिर हर एक का तरीका अलग होता है। सबके लिए एक ही नियम नहीं है। कलियुग में यह रास्ता उत्तम है, इस दूषमकाल में। क्योंकि दादाजी याद आते हैं और फिर दादा का स्मरण रहता है न! इसलिए किसी को भय ही नहीं है न! जब घर में भी कोई कहनेवाला हो तो बच्चे अच्छे रहते हैं या नहीं रहते? प्रश्नकर्ता : एकदम। दादाश्री : फिर कहनेवाला भले ही दो दिन दूसरे शहर गया हो लेकिन डर रहता है कि आएँगे तब क्या कहेंगे? उसके जैसी बात है! इसलिए अभी आप अपने आप ही देखो। आपके विचार अच्छे हैं इसीलिए छुड़वा रहे हैं। आपको खुद को ही भावना नहीं है वैसी, मोहरूपी भाव नहीं है, बल्कि यह तो दूसरा दबावरूपी भाव है। मोह छूट चुका है। ऐसे कई दंपति आए थे। क्योंकि यह तो, सिर्फ अपनी पुस्तक ही पढ़ें न, उसे पढ़कर ही वैराग्य उत्पन्न हो जाता है, तो विषय अच्छा ही नहीं लगता, विषय ही अच्छा नहीं लगता। फिर वे लोग छोटी उम्र में ही
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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