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________________ १५२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दादाश्री : रोग निकल जाता है। नहीं? थोड़ा निकला? प्रश्नकर्ता : बहुत। दादाश्री : तो ठीक है। रोग का और आपका कोई लेना-देना है कोई? गुरुपूर्णिमा के बाद आओ, ब्रह्मचर्यव्रत दे देंगे, तो देखना कैसा मज़ा रहेगा। सुख उसके बाद ही आएगा! एक भाई मुझ से क्या कहने लगे थे? मेरे पुत्रों को मैंने आनंद में ही देखा है, इसलिए मुझे ब्रह्मचर्यव्रत लेना है। लेकिन लेने के बाद तो देखो, क्या आनंद रहता है। इसलिए एक्सटेन्शन करवाते रहते हैं, बाद में! इसलिए फिर आनंद रहता है अच्छा रहता है! पहले तो डर लगता है कि, क्या होगा, क्या होगा? क्या होनेवाला है लेकिन? इस गंदगी से दूर रहकर शुद्धात्मा देखें, तो बहुत शांति हो जाएगी! अपना ज्ञान हो तभी ब्रह्मचर्य पालन किया जा सकता है, वर्ना पालन नहीं कर सकते। मन बिगड़ता ही रहता है। दृष्टि बिगड़ती ही रहती है। यह तो अपनी दृष्टि में शुद्धात्मा दिखाई देंगे न, तो कोई विचार ही नहीं आएगा, ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। अंदर(भीतर) से ऐसा आनंद रहेगा। वे भाई कह रहे थे न कि, 'बहुत आनंद हुआ!' ये सभी, जिन्होंने ब्रह्मचर्यव्रत लिया है न, अभी तीस-तीस साल की उम्र के लोग आते हैं, दोनों साथ में और कहते हैं कि, 'हमने ब्रह्मचर्य की पुस्तक पढ़ी है और अब हमें ब्रह्मचर्यव्रत लेना है! ऐसे सब दुःख? मैंने कहा, 'आप यह नहीं जानते थे?' तब कहा, 'नहीं, किसी ने बताया ही नहीं था न?' सभी ने बताया कि सच्चा सुख इसी में है, इसलिए हमने भी मान लिया। यह तो जब आपने बताया, तब हमारे आत्मा ने कबूल किया। फिर एक ही स्ट्रोक में तो कितने ही जीव मर जाते हैं। उसमें क्या सुख मिलनेवाला है, इतने जीवों को मारकर? और सुख तो उसमें है ही नहीं। बाहर के लोगों का ज्ञानसहित नहीं होता न! ज्ञानसहित ब्रह्मचर्य हो तो बहुत अच्छा असर पड़ेगा! बाँधकर उपवास करवाएँ, उसके बजाय समझकर उपवास किया जाए तो उसकी तो बात ही अलग है न!
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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