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________________ १५४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) नियम ले लेते हैं। तब मैंने कहा, 'आप मुसीबत में आ जाओगे।' तब कहते हैं, 'नहीं अच्छा ही नहीं लगता अब।' दोनों राज़ी-खुशी नियम लेते हैं। फिर भी दो-तीन बार भूल हो जाती है। क्योंकि दूषमकाल के जीव हैं न ! चारों ओर से घिरे हुए जीव। कैसे सारी रात नींद आए ऐसे? ऐसा है यह! इन सौ घरों में से दो घरों में ऐसे लोग होंगे कि क्लेश नहीं होता होगा। लेकिन उन्हें भी परेशानी तो होती ही है न, पड़ोसवाले लड़ रहे हों, तो उन्हें सुनते तो रहना पड़ता है न! यानी यह तो निरा दूषमकाल है। यह तो ज्ञानीपुरुष के पास आए, इसलिए समझदार हो गए। वर्ना समझदार थे ही कहाँ ? उनकी पागलों में भी गिनती नहीं की जा सकती थी। पागल भी कुछ नियमवाले होते हैं। इनका तो नियम ही नहीं है किसी तरह का? यहीं पर 'बिवेयर' के लगे हैं बोर्ड यह ज्ञान मिलने के बाद अब मन चोखा (खरा, अच्छा, शुद्ध, साफ) हो गया है। नहीं? इसलिए आज से ही सोचना भाईयों! बहुत ही सोचने जैसा है। हम कभी किसी से कुछ कहते नहीं हैं। हमने कभी उलाहना ही नहीं दिया और उलाहना देने की हमें फुरसत ही नहीं है। यह तो आपको समझा रहे हैं कि भूल कहाँ हो रही है, प्रगति क्यों नहीं हो रही? ज़बरदस्त पुरुषार्थ हो सकता है, ज्ञान दिया है इसलिए। वर्ना बात ही नहीं की जा सकती। वर्ना मनुष्य की शक्ति ही क्या है धारण करने की? यह बात थोड़ी बहुत भी अच्छी लगी हो तो हाथ उठाओ। देखते हैं, कहना पड़ेगा यह तो, शूरवीर हैं ये सभी। मैंने सोचा कि अच्छा नहीं लगा होगा। अच्छा लगे बगैर तो हाथ ऊपर नहीं उठाता न कोई! मेरी बात पसंद है, यह बात तो पक्की है। यानी विषयवाली बात चुभती है, वह बात भी पक्की है न! अब धीरे-धीरे इसके लिए उपाय करना। यह चेतावनी दे रहा हूँ। बिवेयर, बिवेयर के बोर्ड लगाते हैं न, 'बिवेयर ऑफ थीफ' उसी तरह यह मैंने 'बिवेयर' कहा। 'सावधान, सावधान।' अभी जब तक जिंदा हैं तब तक हो सकेगा। आख़िरी दस साल अच्छे बीत गए तो भी बहुत हो गया। ज़्यादा नहीं निकाल पाएँ तो भी आखिरी दस-पंद्रह-बीस साल अच्छे निकलें तो भी बहुत हो गया। अभी तक जो बीत गए, सो घाटा हुआ और अब 'दादा'
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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