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________________ लो व्रत का ट्रायल १५१ फोर्स हों, तो ठीक है और यदि फोर्स हो, फिर भी जिसका निश्चय दृढ़ है उसे क्या होनेवाला है? सब खाने-पीने की छूट है, फिर भी यदि खानेपीने में सावधानी नहीं रखोगे तो वह नुकसान करेगा फिर। उसका फोर्स वहाँ पहुँचेगा न! मोक्ष में जाना हो तो विषय निकालना पड़ेगा। लगभग हज़ार महात्मा हैं, जिन्होंने सालभर के लिए व्रत लिया है। 'सालभर के लिए मुझे व्रत दीजिए' कहते हैं। सालभर में तो उन्हें पता चल जाता है। अब्रह्मचर्य, वह अनिश्चय है। जो अनिश्चय है, वह उदयाधीन नहीं है। यह तो सब भानरहित है, ये जानवरों की तरह जी रहे हैं। स्त्रियों को भी यह समझना चाहिए और पुरुषों को भी समझना चाहिए। मोक्ष में जाना हो तो, सुख तो मोक्ष में है। और जब विषय नहीं होगा, उन दिनों का तू सुख तो देखना! एक साल के लिए बंद करके देखो! अनुभव करोगे, तो हो पाएगा। परसों चार-पाँच लोग आए थे, उनके साथ मेरी बात हुई तो सुनकर मुझे तो कंपकंपी छूट गई कि ऐसे भी लोग हैं अभी तक? मैं तो समझता था कि विषय के बारे में समझदार हो गए होंगे! इसके बजाय और ज़्यादा विषयी हो गए। ये तो कौन पूछनेवाला है? अब तो दादाजी हैं न सिर पर! अरे! ऐसा किया? मैंने अन्य सारी छूट दी है। अन्य चार विषय, आँख वगैरह के करो, लेकिन यह नहीं। इसमें सामने क्लेमवाला है, एग्रीमेन्टवाला है, भयंकर। वह जहाँ जाएगी वहाँ ले जाएगी। मैंने तो चार-पाँच लोगों से पूछा तो स्तब्ध रह गया। मैंने कहा, 'भैया ऐसी गड़बड़ तो नहीं चलेगी। अनिश्चय है यह तो। उसे तो निकालना ही पडेगा।' प्रथम ब्रह्मचर्य तो चाहिए। यों निश्चय से तो आप ब्रह्मचारी ही हो, लेकिन व्यवहार से नहीं होना चाहिए? व्यवहार से होना चाहिए या नहीं होना चाहिए? बाप ने अनुसरण किया बेटे का ऐसी बात करने में आबरू नहीं चली जाती? प्रश्नकर्ता : नहीं, आबरू नहीं जाती, लेकिन रोग निकल जाता है।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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