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________________ १३० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) होते ही नहीं, जैसे सभी बगीचे में टहलने निकले हों, ऐसे चेहरे दिखते हैं! वर्ना हमारे शब्द नोट करके यदि उसके अनुसार चले न तो पिछले सभी दोष निकल जाएँ। बाकी पूर्व प्रयोग तो है ही, उसके लिए हमसे मना नहीं किया जा सकता न! यह जो खाना पड़ता है, वह पूर्व प्रयोग के आधार पर है। लेकिन अपना चेहरा उतरा हुआ होना चाहिए। सामनेवाला कहे कि 'खाने के लिए बैठिए,' तब खुद ज़बरन बेमन से खाने बैठे। इस तरह बेमन से कभी भी खाया है क्या? उसमें बहुत मज़ा आता है ? यानी इसका कानून यदि समझ जाए कि इसके प्रति चिढ़, चिढ़ और चिढ़ ही रहनी चाहिए। लेकिन यह तो तालाब देखा कि भैंस खुश! फ्रीज़ आया! अब क्या हो सकता है इसका? यह सब गारवता में फँस चुका है, इसलिए प्रभु से विनती करता है, 'हे प्रभु, रह्यु छे फसी!', अब इस गारवता में से छूटे तो निबेड़ा आए। वह गंध, वह फोटो भी कैसा आएगा? ऐसा सब दिन-रात मन में खटकता रहता है। लेकिन यह तो चाय की तरह पीता है। जब चाय पीनी हो, तब कहेगा, 'चाय बनाओ ज़रा।' फिर चाय बनाकर आराम से पीता है! ऐसा कैसे चलेगा? फिर भी कुछ सोचे तो भी उत्तम है। बाकी हम तो सावधान करते हैं कि जैसे-तैसे बच जाए तो अच्छा। फिर और क्या करें? हम उसे थोड़े ही मारेंगे? बाकी ज्ञानी मिलें फिर भी नहीं बच पाए, तो फिर उसी की भूल है न! विषय वेदरूपी भूख मिटाने के लिए हैं, न कि शौक़रूपी आयुष्य श्वासोच्छ्वास पर आधारित है। युवा व्यक्ति, नॉर्मल वेट, ऐसे निरोगी व्यक्ति के चौबीस घंटों के श्वासोच्छ्वास की गिनती करके उस पर से सौ साल का आयुष्य निकाला। जैसे-जैसे श्वासोच्छ्वास अधिक खर्च होते हैं, वैसे-वैसे आयुष्य कम होता जाता है। श्वासोच्छ्वास किस में ज़्यादा खर्च होते हैं ? भय में, क्रोध में, लोभ में, कपट में और उससे भी ज्यादा स्त्री संग में। घटित स्त्री संग में तो बहुत ही ज्यादा खर्च होते हैं, लेकिन उससे भी ज्यादा अघटित स्त्री संग में खर्च होते हैं। जैसे कि गरारी एकदम से खुल जाए!
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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