SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचर्य का मूल्य, स्पष्टवेदन - आत्मसुख १३१ इसलिए इस कुदरत के खेल में यदि सिर्फ ये तीन वेद नहीं होते तो संसार जीत जाते। ये तीन वेद नहीं होते तो क्या बिगड़ जाता? लेकिन बहुत कुछ है इनकी वजह से। अहोहो! इतनी अधिक रमणता है न इनकी वजह से! इस विषय को वेद के रूप में नहीं रखा होता, एक कार्य की तरह, जैसे आहार लेते हैं, इस प्रकार कार्य की तरह रखा होता तो हर्ज नहीं था। लेकिन इसे तो वेद की तरह रखा, वेदनीय के रूप में रखा। ये सारा झंझट ही तीन वेदों का है। भूख का शमन करने के लिए खाना है। भूख लगे उसका शमन करो। जहाँ पूरण करना पड़े, वह सब भूख कहलाती है। भूख, वह वेदना-शमन करने का उपाय है। इस तरह सभी विषय वेदना का शमन करने के उपाय हैं। जबकि इन लोगों को विषय का शौक़ हो गया है। अरे! शौक़ीन मत हो जाना। वहाँ लिमिट खोज निकालना और नोर्मेलिटी में रहना। प्रश्नकर्ता : वेद के तौर पर नहीं लेना है, उस पर से आप क्या कहना चाहते हैं? दादाश्री : लोग वेदते हैं यानी टेस्ट चखते हैं। टेस्ट के लिए चखना, टेस्ट के लिए खाना, वह भूख नहीं कहलाती। भूख मिटाने के लिए रोटी और सब्जी खानी है, टेस्ट के लिए नहीं। टेस्ट के लिए खाने जाओगे तो रोटी और सब्जी आपको भाएगा ही नहीं। टेस्ट लेने गया इसलिए वेद हो गया है। 'भूख' के लिए ही 'खाए', इतना तू समझदार हो जा। तो फिर मुझे तुझसे कुछ कहना ही नहीं पड़ेगा न! तीन वेदों से यह सारा जगत् सड़ रहा है, गिर रहा है। प्रश्नकर्ता : इन तीन वेदों का सोल्युशन तो सारा जगत् खोज रहा है और जैसे-जैसे सोल्युशन करने जाता है, वैसे-वैसे और अधिक उलझता है। दादाश्री : हाँ, यानी सोल्युशन के सभी रास्ते उलझन बढ़ाते हैं। आस-पासवालों से पूछे कि, 'ये भाई कैसे हैं ?' तब सभी कहते हैं कि, 'बहुत सुखी हैं।' और उनसे पूछे तो कहेगा, 'बहुत दु:खी हूँ।' यह सब
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy