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________________ १०४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) सबने परदा डाल दिया है। लोगों को इसी में स्वाद आता है। टेस्ट इसीका है। जहाँ अनेक तरह के झगड़े, विग्रह और संघर्ष पैदा होते हैं, वहीं ये जीव फँसते हैं। फँसाव छूटता नहीं और अनंत जन्म लेने पड़ते हैं। क्योंकि बाद में बैर वसूल करते ही रहते हैं फिर, स्त्री बैर वसूल करती ही रहती है। पुरुष तो भोला बेचारा, भगवान का आदमी! इसमें बरकत ही कहाँ(क्या)? पंजे में से छोड़ती ही नहीं है न, एक बार काबू में आ गया तो खत्म, उसमें स्त्रियों को भी नुकसान तो होता ही है न या नहीं होता? वसूली, मिन्नतें करवाकर एक बहन ने तो मुझे बताया था, 'जब शादी हुई तब ये बहुत कठोर थे।' मैंने पूछा, 'अब?' तब कहे, 'दादाजी, आप तो पूरा स्त्री चरित्र समझते हैं, मुझसे क्यों कहलवाते हैं ?' मुझसे यदि उन्हें कोई भी सुख चाहिए, तब मैं उनसे बहुत मिन्नतें करवाती थी। तब जाकर.... । उसमें मेरा क्या कसूर? पहले वे मुझसे ऐसी मिन्नतें करवाते थे, अब मैं करवाती हूँ। इसलिए मैं लोगों से पूछता हूँ, घर में ऐसा झंझट नहीं है न? प्रश्नकर्ता : नहीं दादाजी, ऐसा नहीं है। दादाश्री : यदि हो तो मुझे बताना, हं। उसे सीधी कर देंगे। एक महीने में तो सीधी कर दूँ। प्रश्नकर्ता : तो ऐसे लालच का कारण क्या है ? ऐसा लालच कैसे आता है? दादाश्री : जिस-तिस में से सुख प्राप्त करना और किसी का भी हड़प लेना। इसलिए फिर 'लॉ'-कानून वगैरह कुछ भी नहीं और लोकनिंद्य हो फिर भी उसकी परवाह नहीं होती। और वह सब लोकनिंद्य ही होता है, इसलिए फिर लालच ऐसे काम करवाता है, मनुष्य को मनुष्य जाति में नहीं रहने देता। लालच तो चुकाए ध्येय कुत्ते को एक पूड़ी दिखाए तो इतने से तो वह अपनी पूरी ‘फैमिलि'
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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