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________________ विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद १०५ को भी भूल जाता है। बच्चे, पिल्ले वगैरह सभी को भूल जाता है और अपना स्थान, जिस मोहल्ले में रहता हो वह भी भूल जाता है और कहीं का कहीं जाकर खड़ा रहता है। लालच के मारे दुम हिलाता रहता है, एक पूड़ी के लिए! लालच, जिसका मैं कड़ा विरोधी हूँ। लोगों में जब मैं लालच देखता हूँ तब मुझे लगता है, 'ऐसा लालच?' 'ओपन पॉइज़न' (खला ज़हर) है! जो मिले वह खाना, लेकिन लालच नहीं होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : बिना लालच के रहने से मिल भी जाता है। दादाश्री : यानी इन लालची लोगों को ही यह झंझट है। वर्ना सबकुछ घर बैठे मिल जाता है। हम इच्छा नहीं करते, फिर भी सभी चीजें मिलती हैं न! लालच तो नहीं, लेकिन इच्छा भी नहीं करते! प्रश्नकर्ता : लालच और इच्छा में क्या अंतर है? दादाश्री : इच्छा रखने की छूट है सभी को। किसी भी तरह की इच्छाओं का एतराज़ नहीं है। लालची तो, कुत्ते को एक पूडी दिखा दी, तो वह कहीं का कहीं चला जाता है, उसमें लालच आ गया न! प्रश्नकर्ता : यानी, लालच में अच्छे-बुरे का विवेक नहीं रहता होगा न! दादाश्री : लालची तो, जानवर ही कहो न उसे! मनुष्य के रूप में जानवर ही घूमते रहते हैं। थोड़ा-बहुत लालच तो हर किसी को होता है, लेकिन उस लालच को निबाह सकते हैं। लेकिन जिसे लालची ही कहा जाता है, उसे तो जानवर ही समझ लो न, मनुष्य के रूप में! एक व्यक्ति है, हम खाने की कोई अच्छी चीज़ लेकर आएँ, जो उस व्यक्ति को बहुत भाती हो, तो वह लालच के मारे बैठा रहेगा, दोतीन घंटे बैठा रहेगा। उसे थोड़ा दे दें उसके बाद ही वह जाएगा। लेकिन वह लालच की वजह से बैठा रहता है और जो अहंकारी हो, वह तो कहेगा, 'छोड़ तेरी झंझट, इसके बजाय अपने घर चलो! वह लालची नहीं होता। यानी लालचों से यह जगत् बंधा हुआ है। अरे! कुत्तों और गधों
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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