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________________ विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद लूँगी।' वह रोष रखे बगैर रहेगी नहीं न! जीवमात्र रोष रखता है, आपके छेड़ने की देर है! कोई किसी से दबकर नहीं रहता। किसी का किसी से लेना-देना नहीं है। यह सब तो भ्रांति से मेरा दिखाई देता है, मेरातेरा! यह तो, लाचारी में सामाजिक आबरू के कारण पति से दबकर रहती हैं, लेकिन फिर अगले जन्म में तेल निकाल देगी। अरे! साँप होकर डसेगी भी! फिर लालच में से लाचारी में एक स्त्री अपने पति को चार बार साष्टांग करवाए, तब जाकर एकबार छूने देती है! ऐसा करने के बजाय सागर में समाधि ले ले तो उसमें क्या गलत है? किसलिए ऐसे चार बार साष्टांग? प्रश्नकर्ता : इसमें स्त्री क्यों ऐसा करती है? दादाश्री : वह एक प्रकार का अहंकार है। प्रश्नकर्ता : लेकिन उसका उसे क्या फल मिलेगा? दादाश्री : कोई फायदा नहीं, लेकिन अहंकार ऐसा कि 'देखा न, इसे कैसा सीधा कर दिया!' और वह बेचारा लालच से ऐसा करता भी है! लेकिन स्त्री को तो फिर उसका फल भुगतना पड़ेगा न! । प्रश्नकर्ता : उसमें वह खुद क्या स्त्रीपन का बचाव करती है? दादाश्री : नहीं। स्त्रीपन का बचाव नहीं। वह अहंकार ही है, रौब के लिए है और पति को बंदर की तरह नचाती है। फिर उसके 'रीएक्शन्स' तो आएँगे ही न? पति भी बैर रखता है फिर कि, 'मैं तेरी पकड़ में आया, तब तूने मेरी ऐसी हालत की और मेरी इज़्ज़त उतारी। अब तू मेरी पकड़ में आए उतनी ही देर है!' यानी बाद में आबरू बिगाड़ देता है, घड़ीभर में धूल में मिला देता है। लालची को तो, यदि कोई औरत विषय के लिए इन्कार करे न,
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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