SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दादाश्री : पता ही नहीं चलता। बीस्ट (पशु) वाइल्ड बीस्ट (जंगली पशु) कहता हूँ मैं तो! हाँ, क्षत्रियपुत्र कौन? कि ऐसे भीख माँगने का अवसर आने से पहले तो बिल्कुल बंद ही कर दे। करे ही नहीं कभी भी, परमेनन्ट बंद। स्टॉप फॉर एवर (सदा के लिए बंद)। क्योंकि ऐसी नीयत है इसलिए वह स्त्री, स्त्री ही नहीं कहलाएगी। उसे स्त्री कहेंगे ही कैसे? वह तो मार्केट मटिरियल (बाज़ारू चीज़) कहलाएगी। हिन्दुस्तान की स्त्रियाँ, स्त्री जैसी होनी चाहिए! कैसी पशुता आई है? देखो न, मुझे उलाहना देना पड़ रहा विषय से ही टकराव प्रश्नकर्ता : विषय के लालच में जब सफल नहीं होता, तब फिर शंका आदि सब करता है न? दादाश्री : सफल नहीं होता, तो सभी कुछ करता है। शंका करता है, कुशंका करता है, सब तरह के (नाटक) करता है फिर। या अल्लाह, परवरदिगार होता है फिर! यानी लाचार भी हो जाता है लेकिन फिर वही उसकी फजीहत भी करता है, सो अलग। उसके कब्जे में आए तो फिर फजीहत किए बगैर रहेगा ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : लेकिन विषय है, इसलिए पति पतिपना (पति के तौर पर हक़ जमाना) करता है न! दादाश्री : पतिपना यानी क्या कि दबाव डालकर भोग लेना। लेकिन फिर जन्म का हिसाब बँध जाता है न? प्रश्नकर्ता : उसमें क्या होता है? दादाश्री : बैर बँधता है! घड़ी भर भी कोई आत्मा दबा हुआ रहता होगा? बहुत टकराव हो जाए न, फिर कहता है, 'मुँह फुलाकर क्यों घूम रही हो?' तो मुँह फिर और ज़्यादा फूल जाता है। फिर वह ज्यादा रोष रखती है। पत्नी कहेगी, 'मेरी लपेट में आएगा तब मैं इसका तेल निकाल
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy