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________________ अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण दादाश्री : खा ही लेगा। और तब भी जो ऐसा न करे, वह सती कहलाती है। मुँह से जैसा बोले, वैसा ही उसके आचरण में होता है उसे। मर जाऊँ तो भी नहीं करूँगी। इस विषय के कारण (जीव) स्त्री बना है। सिर्फ एक विषय के कारण ही और पुरुष ने भोगने के लिए उसे प्रोत्साहित किया और बेचारी को बिगाड़ा। बरकत नहीं हो, फिर भी उसमें बरकत है ऐसा मन में मान लेती है। तब कहे, 'ऐसा क्यों मान लिया? कैसे मानेगी?' पुरुष लोग उसे कहते ही रहे, इसलिए वह समझीं कि 'ये कहते हैं उसमें गलत क्या है?' अपनेआप नहीं मान लेती। आपने कहा हो, 'तू बहुत अच्छी है, तेरे जैसी तो कोई स्त्री मैंने देखी ही नहीं।' उसे कहो कि, 'तू सुंदर है।' तो वह खुद को सुंदर मान लेती है। इन पुरुषों ने स्त्रियों को स्त्री की तरह रखा है। और स्त्री मन में समझती है कि, 'मैं पुरुषों को बना रही हूँ। मूर्ख बना रही हूँ।' ऐसा करके पुरुष भोगकर अलग हो जाते हैं। उसे भोग लेता है, जैसे कि इसी रास्ते पर भटकना हो... ज़्यादा समझ में नहीं आ रहा न? थोड़ा-थोड़ा? प्रश्नकर्ता : समझ में आ रहा है, कम्प्लीट। पहले तो इस तरह से सत्संग चलते थे कि पुरुषों का कोई दोष नहीं है। लेकिन आज बात निकली, तब लगा कि पुरुष भी इस तरह बहुत बड़ा ज़िम्मेदार बन जाता दादाश्री : पुरुष ही ज़िम्मेदार है। स्त्री को स्त्री की तरह रखने में पुरुष ही ज़िम्मेदार है। प्रश्नकर्ता : हाँ। यानी ऐसा नहीं है कि जो स्त्री है, वह कई जन्मों तक स्त्री के रूप में रहेगी, ऐसा नक्की नहीं है। लेकिन उन लोगों को मालूम नहीं पड़ता, इसलिए इसका उपाय नहीं हो पाता। दादाश्री : यदि उपाय हो जाए तो फिर स्त्री, पुरुष ही है। उस गाँठ को जानती ही नहीं बेचारी। और वहाँ पर इन्टरेस्ट आता है, वहाँ पर मज़ा आता है इसलिए पड़ी रहती हैं। और कोई ऐसा रास्ता नहीं जानता, इसलिए
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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