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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दिखाता नहीं है। वह तो सिर्फ सती स्त्रियाँ ही जानती हैं। सतियों को उनके पति, एक पति के अलावा अन्य किसी के बारे में सोच ही नहीं और वैसा कभी भी नहीं। उसका पति तुरंत मर जाए, चला जाए, फिर भी नहीं। उसी पति को पति मानती है। अब उन स्त्रियों का सारा कपट खत्म हो जाता है। किस का कपट खत्म हो जाता है? प्रश्नकर्ता : सती स्त्रियों का। दादाश्री : जो स्त्री पूर्णरूप से सती की तरह रहती है, उसके सारे रोग मिट जाते हैं। प्रश्नकर्ता : अभी हम आपके ज्ञान से और हमारे दोष आपको बताकर, हम भी सती बन सकेंगे न? दादाश्री : सती तो, पहले से नहीं हुई हो, लेकिन बिगड़ जाने के बाद भी सती बन सकती है। जब से निश्चय किया, तब से सती बन सकती प्रश्नकर्ता : और जैसे-जैसे सतीपना का ध्यान रखते जाएँगे, वैसेवैसे कपट खत्म होता जाएगा? दादाश्री : सतीपना किया, तब कपट तो जाने ही लगेगा अपने आप ही। आपको कुछ कहना नहीं पड़ेगा। मूल सती तो जन्म से ही सती होती है, इसलिए उसमें पहले का कोई दाग़ नहीं होता। और आपको पहले के दाग़ रह जाएँगे इसलिए फिर से अगले जन्म में पुरुष बनोगे। सतीपने से सब खत्म हो जाएगा। जितनी भी सतियाँ हुई थी उनका सारा (स्त्रीपना) खत्म हो जाएगा और वे मोक्ष में जाएगी। समझ में आता है थोड़ा बहुत? मोक्ष में जाते हुए सती बनना पड़ेगा। हाँ, जितनी सतियाँ हुई वे मोक्ष में गईं, वर्ना फिर पुरुष बनना पड़ेगा। सर्वकाल में शंका जोखिमी ही ये बेटियाँ बाहर जाएँ, पढ़ने जाएँ, तब भी शंका। 'वाइफ' पर भी शंका। ऐसा सब दगा है! घर में भी दशा ही है न अभी! इस कलियुग
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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