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________________ ७० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) सती होने पर मोक्ष पक्का दादाश्री : भले ही कुछ भी हो जाए, पति नहीं हो, पति चला गया हो, फिर भी दूसरे के पास नहीं जाए। दूसरा चाहे कैसा भी हो, खुद भगवान पुरुष बनकर आए हों, लेकिन नहीं । 'मेरे लिए मेरा पति है, पतिवाली हूँ ।' वह सती कहलाती है । आज सतीपना कहा जा सके, ऐसा है इन लोगों का? ऐसा है ही नहीं है न ? ज़माना अलग तरह का है न! सत्युग में कभीकभी ऐसा समय (Pg-69) आता है, सतियों के लिए ही । इसीलिए सतियों का नाम लेते हैं न लोग ! प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : वह सती होने की इच्छा से उसका नाम लिया हो तो कभी न कभी सती बनेगी जबकि विषय तो चूड़ियों के मोल बिकता है। ऐसा आप जानते हो? नहीं समझे मेरे कहने का मतलब ? प्रश्नकर्ता : हाँ, चूड़ियों के मोल बिकता है। दादाश्री : कौन से बाज़ार में ? कॉलिज में ! किस भाव से बिकता है? सोने के भाव से चूड़ियाँ बिकती हैं, वे हीरों के भाव से चूड़ियाँ बिकती है! सब जगह ऐसे नहीं मिलता । सब जगह ऐसा नहीं है। कुछ को तो सोना दें तो भी न लें। भले ही कुछ भी दो, फिर भी न लें! लेकिन आज की दूसरी स्त्रियाँ तो बिकती हैं। सोने के मोल नहीं तो और किसी मोल से बिकती हैं ! कोई कभी भी मांसाहार नहीं करता हो, लेकिन यदि दो-तीन दिन का भूखा हो, तो मरने के लिए तैयार होगा या मांसाहार करेगा ? मांसाहार करेगा ही नहीं, भले ही कुछ भी हो जाएगा । और बोलता है कि 'मर जाऊँगा, लेकिन मांसाहार नहीं करूँगा, कभी भी नहीं करूँगा, भले ही भूखा मर जाऊँ।' लेकिन ऐसे ही दो-तीन दिन और गुज़र जाएँ और उसे भूख से मरने की नौबत आए, ऐसा लगे तो ? कोई दिखलाए तब ? प्रश्नकर्ता : तब शायद खा ले, जीने के लिए।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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