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________________ अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण ६९ दादाश्री : अब पुरुष तो अपने स्वार्थ के लिए करता है और उस औरत में हमेशा के लिए रोग लग जाता है, और पुरुष तो स्वार्थी निकालता है, फिर चला। यह तो ताँबे का लोटा निकला, धो दिया कि साफ, लेकिन उस औरत को लग गया जंग! उसका कपट का स्वभाव बन जाएगा। उसे इन्टरेस्ट आता है इसलिए फिर स्त्री के स्वभाव का बँध पड़ जाता है। आपको एक दूसरा उदाहरण देता हूँ। अपने घर पर बच्चे कुछ उल्टा करें तब उसे डाँटें, मारें, तो फिर वह रूठकर चला जाता है। ऐसा पाँचसात-दस बार होगा, तब फिर वह तंग आ जाएगा न? प्रश्नकर्ता : हाँ, तंग आ जाएगा। दादाश्री : माँ-बाप को काम लेना नहीं आता, इसलिए। आजकल के सभी माँ-बापों को बच्चों से काम लेना भी आता नहीं। इससे बच्चा तंग हो जाता है न! अब पड़ोसी क्या करेगा? 'बेटा, आ इधर आ, इसलिए फिर वहाँ जाता है। अरे! अंदर से वह नाश्ता ला अंदर से।' इसलिए फिर, उस बच्चे को वह जो कहेगा वैसा वह कर देगा न उसके लिए? प्रश्नकर्ता : कर देगा और माँ-बाप के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाएगी। दादाश्री : और पड़ोसियों के प्रति? प्रश्नकर्ता : उनके प्रति प्रेम उत्पन्न होगा। वह जो भी कहे, वह सभी करने को तैयार हो जाता है। दादाश्री : इसी प्रकार स्त्री को अपने पति के प्रति घृणा उत्पन्न होती है। क्योंकि उसे विषय में रुचि है और वह पुरुष उससे अच्छी-अच्छी बातें करने लगा, तो वह उसे सुंदर दिखने लगता है। वह उसे एन्करेज करता है, अपना काम निकालने के लिए उसे एन्करेज करता रहे और वह समझती है कि, 'ओहोहो! मुझ में अक़्ल नहीं है फिर भी मैं बहुत अक्लमंद लगती हूँ इन्हें' इसलिए फिर फँस ही जाती है। किसी को समझ में आए, ऐसी बात है न यह? प्रश्नकर्ता : समझ में आती है।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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