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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) अणहक्क के विषय की वजह से स्त्रीपना नहीं छूटता प्रश्नकर्ता : बीच में वह जो बात हुई थी न कि कपट करने के लिए पुरुष ने प्रोत्साहन दिया है, तो उसमें मुख्य कारण पुरुष है ! हमारा जीवन व्यवहार और उनका कपट, उनकी जो गाँठ, उसमें यदि किसी भी तरह से मैं ज़िम्मेदार हूँ, तो उसके लिए आप विधि कर दीजिएगा, ताकि मैं वे छोड़ सकूँ। ६८ दादाश्री : हाँ, विधि कर देंगे। उनका कपट बढ़ा, उसके लिए हम पुरुष ‘रिस्पोन्सिबल' हैं। कई पुरुषों को इस ज़िम्मेदारी का भान बहुत कम होता है। वह यदि सभी प्रकार से मेरी आज्ञा का पालन कर रहा हो, फिर भी स्त्री का उपभोग करने के लिए वह स्त्री को क्या समझाएगा ? स्त्री से कहेगा, ‘अब इसमें कोई हर्ज नहीं है ।' फिर स्त्री बेचारी धोखे में आ जाती है। उसे दवाई नहीं पीनी हो... और पीनी ही नहीं हो, लेकिन फिर भी प्रकृति पीनेवाली है न! प्रकृति उस समय खुश हो जाती है । लेकिन वह प्रोत्साहन किसने दिया ? तो आप उसके लिए ज़िम्मेदार हो । जैसे यदि कोई अज्ञानी आदमी हो, वह किसी के साथ सीधा नहीं चल रहा हो, और कोई स्त्री बेचारी ज़रा होशियार हो तो वह आदमी उसे क्या कहता है ? तू तो बहुत ही अक़्लमंद है। खूब उसकी तारीफ करे न, तो फिर यदि उसकी इच्छा नहीं हो, फिर भी वह उस पुरुष के साथ जोइन्ट हो जाती है। अब यदि पुरुष स्त्री को ऐसी बात कहे जो उसे पसंद हो तो वह स्त्री उसके वश में हो जाती है। उसे अच्छी लगनेवाली बातें यदि कई पुरुष करे, हर बात में ऐसा कहे न, ‘करैक्ट, बहुत अच्छा ।' और उसका पति यदि थोड़ा टेढ़ा हो और दूसरा पुरुष ऐसा मीठा बोले तो क्या फिर गड़बड़ होगी ? प्रश्नकर्ता : होगी, दादाजी । दादाश्री : ये सभी स्त्रियाँ इसी कारण स्लिप हुई हैं। कोई मीठा बोले कि उसीकी हो जाती हैं । यह बहुत सूक्ष्म बात है। समझ में आ पाए, ऐसा नहीं है। प्रश्नकर्ता : समझ में आता है, दादाजी ।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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