SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण ६७ अनुभव नहीं करवाया है, वर्ना इस गंदगी में कौन पड़ता? ऊपर से नर्क का जोखिम रहता है! प्रश्नकर्ता : और नर्क में जाना पड़े, वह तो खराब ही है न? दादाश्री : यह बात ही ऐसी है, यह जो आवारागर्दी का काम है न, वह सब नर्क में ही ले जाएगा। अपना यह विज्ञान पाने के बाद हार्टिली पश्चाताप करेगा तो भी सारे पाप जल जाएँगे। दूसरे लोगों के पाप भी जल जाएँगे, लेकिन पूरा नहीं जल पाएगा। ऐसा विज्ञान मिलने के बाद, वह विषय के लिए खूब पछतावा करता रहे तो पार उतर जाएगा! सिर्फ यही एक रोग ऐसा है कि जो नर्क में ले जाता है और यदि नर्क में गया तो फिर ज्ञानीपुरुष नहीं मिल पाएँगे, यह सत्संग नहीं मिलेगा! मोक्षमार्ग हाथ से निकल जाएगा! यानी कि परस्त्रीगमन, परस्त्रीविचार नर्क में ले जाते हैं! यह चद्दर निकाल दें तो? कोई हाथ भी नहीं लगाएगा! तो उसमें देखने योग्य क्या है? उसका तो विचार भी नहीं आना चाहिए! इसीलिए हम सावधान करते हैं न! अभी दहीबडे आदि सबकुछ खाने देते हैं न! लेकिन सबसे बड़ा जोखिम यही है! नर्क में जाने पर भी ठिकाना नहीं पड़ेगा! संसारी लोग तो ठगे गए हैं, बेचारों को पता नहीं है! और यहाँ पर इसके बारे में यदि जानकारी होने के बावजूद भी मार खाए तो बहुत गलत कहलाएगा न! अभी तक भटकते रहे हैं, उसका कारण यह विषय ही है न! वह नहीं होना चाहिए और यदि हो तो उसे एकदम से छोड़ नहीं सकते, लेकिन उसके लिए तुरंत प्रतिक्रमण करने ही चाहिए। विषय क्या यों ही छोड़ने से छूट जाए, ऐसा है ? इसने तो अनंत जन्मों से जकड़ा हुआ है, वह जल्दी से छूटनेवाला नहीं है ! रात-दिन सिर्फ विषय के ही प्रतिक्रमण करते रहना चाहिए और वह भी दृष्टि बिगड़ने से पहले ही प्रतिक्रमण कर लेने चाहिए।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy