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________________ अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण ऐसा गायों-भैंसों में चलता है क्योंकि वहाँ मंडप भी नहीं है और ब्राह्मण भी नहीं है। गायों-भैंसों में मंडप होते हैं क्या ? वहाँ ब्राह्मण को नहीं बिठाते न? यह तो मनुष्यों में विवेक रखा जाता है और कुदरत का बंधन है ही ऐसा। मनुष्य में आया कि बंधन होगा ही । महामुश्किल है ! यह सुनकर तुझे कुछ पछतावा हो रहा है! प्रश्नकर्ता : बहुत ही हो रहा है । दादाश्री : पछतावे में जलेगा, तब भी पाप खत्म हो जाएँगे। दोचार लोग यह बात सुनकर मुझसे पूछने लगे कि, 'हमारा क्या होगा ?' मैंने कहा ‘अरे! भाई मैं तेरा सबकुछ ठीक कर दूँगा । तू आज से समझदार बन जा।' जागे तभी से सवेरा । उसकी नर्कगति उड़ा दूँगा, क्योंकि मेरे पास सभी रास्ते हैं, मैं कर्ता नहीं हूँ इसलिए । यदि मैं कर्ता हो जाऊँ तो मुझे बंधन है। मैं आपको ही बताता हूँ कि अब ऐसा करो आप । उससे फिर सब खत्म हो जाता है और ऐसे ही कुछ अन्य विधियाँ करते हैं । उसके जोखिम तो ध्यान में रखो ६३ इसलिए सही जोखिम तो जानना चाहिए या नहीं जानना चाहिए? जोखिम याद रहेगा क्या तुझे ? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : अब भूलेगा नहीं न ? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : पूरी जिंदगी ? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : लड़कों को, बेचारों को तो मुश्किल है न? अभी तक शादी नहीं हुई, जोखिम से संबंधित ऐसा उपदेश कोई देता नहीं ! कोई देता है ? नहीं। क्योंकि लोग विषयी हैं । जो खुद विषयी हो, वह व्यक्ति विषय से संबंधित उपदेश कैसे दे सकेगा ? जो खुद चोरी करता है, वह 'चोरी
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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