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________________ [२] विकारों से विमुक्ति की राह विकारों को हटाना है? प्रश्नकर्ता : 'अक्रम मार्ग' में विकारों को हटाने का साधन कौन सा? दादाश्री : यहाँ विकारों को हटाना नहीं है। यह मार्ग अलग है। कुछ लोग यहाँ मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य(व्रत) लेते हैं और कुछ पत्नीवाले होते हैं, उन्हें हमने जो रास्ता बताया होता हैं, उस तरह उसका हल लाते हैं। यानी 'यहाँ' विकारी पद है ही नहीं, पद ही 'यहाँ' निर्विकारी है न! विषय, वे विष नहीं हैं, वे बिल्कुल विष नहीं है। विषय में निडरता, वह विष है। विषय तो मजबूरन, जैसे पुलिसवाला पकड़कर करवाए और करे, उस तरह का हो तो उसमें हर्ज नहीं। खुद की मर्जी से नहीं होना चाहिए। पुलिसवाला पकड़कर जेल में बिठाए तो आपको बैठना ही पड़ेगा न? वहाँ कोई चारा है? यानी कर्म उसे पकड़ता है और कर्म ही उसे पटकता है, उसके लिए मना नहीं कर सकते न। बाकी, जहाँ विषय की बात भी हो, वहाँ पर धर्म नहीं है। धर्म निर्विकार में होता है। भले ही कितने ही कम अंश का धर्म हो, लेकिन धर्म निर्विकारी होना चाहिए। विकार से ही संसार खड़ा हुआ है। यह पूरा संसार यानी विषयों का विकार, इन पाँच इन्द्रियों के विषयों के विकार हैं और मोक्ष यानी निर्विकार, आत्मा निर्विकार है। वहाँ राग भी नहीं है और द्वेष भी नहीं है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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