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________________ 30 समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) प्रश्नकर्ता : बात सही है, लेकिन उस विकारी किनारे से निर्विकारी किनारे तक पहुँचने के लिए कोई तो नाव होनी चाहिए न? दादाश्री : हाँ, उसके लिए ज्ञान है। उसके लिए वैसे गुरु मिलने चाहिए। गुरु विकारी नहीं होने चाहिए। गुरु विकारी होंगे तो पूरा समूह नर्क में जाएगा। फिर से मनुष्यगति भी नहीं देख पाएँगे। गुरु में विकार शोभा नहीं देता। किसी भी धर्म ने विकार को स्वीकार नहीं किया है। जो विकार को स्वीकार करे, वह वाम मार्गी कहलाता है। पहले के ज़माने में वाम मार्गी थे, विकार में रहते हुए भी ब्रह्म ढूँढने निकले थे। प्रश्नकर्ता : वह भी एक विकृत रूप ही हो गया, ऐसा कहा जाएगा न? दादाश्री : हाँ, विकृत ही न! इसलिए वाम मार्गी कहा न! वाम मार्गी यानी मोक्ष में नहीं जाते और लोगों को भी मोक्ष में नहीं जाने देते। खुद अधोगति में जाते हैं और लोगों को भी अधोगति में ले जाते हैं। प्रश्नकर्ता : हर एक युग में ऐसे वाम मार्ग रहे होंगे न? दादाश्री : हाँ, हर एक युग में वाम मार्ग तो होता ही है। कम या ज्यादा, वाम मार्ग होता तो है। पहले बहुत कम था। अभी कलियुग में बहुत ही ज्यादा है। जब तक ज़रा सा भी विकारी संबंधवाला हो न, तब तक वह दुनिया में किसी को नहीं सुधार सकता। विकारी स्वभाव आत्मघाती स्वभाव ही है। अभी तक किसी ने सिखाया नहीं कुछ भी? ब्रह्मचर्य, प्रोजेक्ट का परिणाम प्रश्नकर्ता : कुदरत को यदि स्त्री-पुरुष की ज़रूरत नहीं होती, तो वह क्यों दिया?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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