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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) पुद्गलसार चाहिए ही, वर्ना याद भी नहीं रहेगा कुछ भी। वाणी बोलने के भी लाले पड़ें। प्रश्नकर्ता : यानी इन दोनों में कुछ ऐसा निमित्त-नैमित्तिक संबंध है क्या? दादाश्री : है न! क्यों नहीं? मुख्य चीज़ है वह तो! ब्रह्मचर्य हो तो फिर आप जो तय करो, वह काम हो सकेगा। सभी तय किए हुए व्रत-नियम सब पालन कर सकोगे। आगे बढ़ सकोगे और प्रगति होगी। पुद्गलसार तो बहुत बड़ी चीज़ है। एक तरफ पुद्गलसार हो, तभी समय का सार निकाल सकेगा! किसी ने लोगों को ऐसी सही समझ दी ही नहीं है न! क्योंकि लोग खुद ही पोल(गोलमाल, गड़बड़, इन्सिन्सियर) स्वभाव के है। पहले के ऋषि-मुनि प्योर थे। इसलिए वे समझाते थे। प्रश्नकर्ता : हम इस उम्रवाले विद्यार्थियों को सिखाते हैं। उम्र के हिसाब से जो कहना चाहिए उस तरह से, कि तू ऐसा करना ताकि वीर्यबल का जतन हो। तो निन्यानवे प्रतिशत लड़के नहीं मानते। दादाश्री : और मैं इन लड़कों से कहता हूँ कि, 'अरे, तुम शादी कर लो' तब वे कहते हैं कि, 'नहीं। हमें ब्रह्मचर्य पालन करना है।' और आप कहते हो कि, 'ब्रह्मचर्य पालन करो' तब वे कहते हैं कि 'नहीं। हमें शादी करनी है।' यानी पहले उपदेश देनेवाले को वीर्यबल का पालन करना चाहिए। बोलनेवाला बलसहित होना चाहिए। आपके बोल की कीमत कब होगी? जब आप बलवान होंगे तभी सामनेवाला एक्सेप्ट करेगा। वर्ना सामनेवाला आगे चलेगा ही नहीं न! अभी इसके जैसे कई लड़के मेरे पास हैं। उन्हें हमेशा के लिए ब्रह्मचर्य पालन करना है, मन-वचन-काया से।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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